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दो चार दिनों पहले, दो ख़बरें प्रमुखता से छा गयी थी टी व्ही पर,
एक तो सचिन का एक दिवसीय क्रिकेट में विश्व एक दिवसीय क्रिकेट का पहला दोहरा शतक, और दूसरी ममता दीदी का रेल बजेट.
पहले तो सचिन को लाख लाख बधाईयां. वाकई बहुत ही बढियां काम किया है और देश का नाम रोशन किया है. मगर शाम को अधिकांश न्युज़ चेनलें बस सचिन सचिन चिंघाडती रही और रेल बजेट पर बहस कबाडखाना पहुंचा दी गयी.अब तो उन्हे भारत रत्न की भी शिफ़ारिस हो गयी है.
रेल्वे बजट पर कोई खास गहमा गहमी नहीं रही.
वैसे भी उस बजेट में कोई खास बात तो थी नहीं. बंगाल और सिर्फ़ बंगाल छाया रहा. मन मसोस कर रह गया कि , कभी मेरे इंदौर शहर से चुने हुए प्रकाशचंद्र सेठी रेल्वे मंत्री हो गये थे, और मेरे शहर को बच्चों की झुक झुक गाडी भी नसीब नहीं हुई थी. चलो किस्मत अपनी अपनी.
मगर एक बात मेरे दिमाग में कौंध गयी. ममता नें कई बिज़नेस मोडेल्स सामने रखे,मगर कोर बिज़नेस पर खास प्रभावित नहीं किया.
मैं एक फ़्रीक्वेंट ट्रेवेलर हूं,रेल और हवाई जहाज़ का. ये मानता हूं कि रेल विभाग में कुछ अच्छे परिवर्तन हुए ज़रूर है, और काया परिवर्तन भी हुआ है, मगर ये काफ़ी है?
एक बात कहना चाहूंगा कि रेल को सर्व प्रथम ये तो करना ही चाहिये कि हर रेलगाडी के डब्बे ज़रूर बढायें. अभी परसों मैं हैदराबाद से पूना आ रहा था तो गाडी में एक रिटायर्ड रेल्वे अफ़सर था, जिसनें खुलासा किया कि रेल्वे के पास कुल ११०० रेक्स ही हैं, और वे भी काफ़ी नहीं है.जितने बन रहें है,उससे से ज़्यादह की दरकार है, और अब कुछ बाहर से लाने की बात चल रही थी.
डब्बे बढाने में कोई तकनीकी समस्या नहीं है, बस हमारे अधिकतर स्टेशनों के प्लेटफ़ार्म ही छोटे हैं.
एक बात नें और ध्यान खींचा. कलकता से दिल्ली तक डबल डेकर ट्रेन का भी आश्वासन दिया गया है. ये बात तो बढियां ही है. मगर मुंबई से पूना या सोलापुर/कोल्हापुर चलने वाली सीटिंग वाली डबल डेकर जो दस पंद्रह साल से चल रही थी उसके डिज़ाईन को बेहतर काने की काफ़ी गुंजाईश थी.
मगर मैं जब पिछले साल यूरोप गया था तो २० दिन के प्रवास में १५ दिन सिर्फ़ यू रेल में ही घूमा, ८ देश और ३५ शहर. तो मैंने डबल डेकर का भी सफ़र किया और खूब आनंद भी लिया.मिलान में होटल में जगह नहीं मिली, मगर ट्रेन में कभी रिज़र्वेशन की ज़रूरत नहीं पडी.(ये अलग बात है कि रात को ११ बज़े हम मिलान से रोम की ट्रेन में सवार हो गये, सुबह ७ बज़े रोम के प्लेटफ़ार्म नं ७ पर पहुंचे और ७.३० की गाडी में वापिस प्लेटफ़ार्म नं १४ से बैठ कर १ बजे दोपहर को मिलान पहुंचे-ज़रूरी मीटिंग जो थी)
उसके कुछ चित्र लगा रहा हूं. आप देखेंगे, कि रात की गाडी में दो और चार के केबिन थे, जो हालांकि बडे छोटे थे, मगर
हर केबिन में एक छोटा सा कबर्ड और नल के साथ बेसिन होता था.
कोर्रिडोर से मैं घूमते घूमते जब टॊईलेट पहुंचा तो मेरी आंखे फ़टी की फ़टी रह गयी. विकलांगों के लिये बने उस टाइलेट का साईज़ एक चार बर्थ के केबिन से भी बडा था, और उसमें सभी लक्ज़्युरी की सेवायें उपलब्ध थी.
दिन की डबल डेकर जो वेनिस से निकलते हुए पकडी थी उसमें आरामदायक सीटें मिलीं, और Ist Class और IInd Class की सीटों में कोई खास अंतर नहीं था.(मेरे यु रेल पास में प्रथम श्रेणी का टिकट था, तोभी हम कहीं भी बैठ जाते थे!!!)
आश्चर्य तो तब हुआ जब मैंने लोगों को टाइलेट के नल से पानी पीते हुई देखा!!!
वहां के स्टेशनों का क्या कहना. साफ़ सफ़ाई, और दुकानों की सजावट सभी देखते ही बनती थी. अब ये चित्र देखें- ये स्वीडन के एक छोटे स्टेशन पर एक दुकान का है.
तो चलो , हम भी सर पर रज़ाई या चादर ओढकर सो जायें , और ये खुश नज़ारा देखें, मीठा सपना देखें कि भारत में भी कभी वह दिन आये कि हम भी इन जैसी ट्रेनों मे सफ़र करें, कभी भी स्टेशन पहुंच जायें, बर्थ अवेलेबल!! , टी टी को बर्थ के लिये आगे पीछे नहीं करना पडे़,,सभी ट्रेनें ए सी रहें...
आल इज़ वेल यारों!!
होली की सभी को शुभकामनायें.
एक विडियो देखें.यूरोप की तराईयों में दिली सुकून के लिये भटक रहा था, डबल डेकर के लिये. मिली और बाखुदा, खूब मिली!!! घबराईयेगा नहीं. इस बार मैंने गाना नहीं गाया है!!
मेरे सपनों की रानी कब आयेगी तू?
जब बात दिल से लगा ली तब ही बन पाए गुरु
8 hours ago
1 comment:
Europe ke मिलान की तस्वीरें बहुत सुंदर लगीं और रेल का सफ़र भी.
Indian रेलवे के लिए आप ने जो सुझाव दिए हैं किसी ना किसी रेल विभाग वाले ने पढ़ ही लिए होंगे अब तक.
waise इतनी जल्दी तो सुधार होने वाला नहीं..उमीद तो कर ही सकते हैं.
जब मेट्रो जैसी सुविधा आ सकती है तो उम्मीद है डबल डेकर भी जल्द आएगी.
--बहुत लंबे अंतराल में पोस्ट आई है. अगली पोस्ट में गाने की उम्मीद तो है ही.
शुभ कामनाएँ
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