Sunday, June 7, 2009

नो चीटींग .... रोंग साईड ओव्हरटेक...

आज ७ जून है.

आज खुशी की बात ये है, कि मेरे बेटे अमोघ का नवां जन्म दिन हैं और अभी शाम हमने एक पारिवारिक माहौल में मनाया है.

अभी अभी एक बडा अचीवमेंट भी उसके नाम रहा है. युसीमास मेंटल अरिथमेटिक्स एबेकस प्रतियोगिता में लगातार तीसरी बार मध्य प्रदेश में पांचवे लेवल में वह चेम्पियन याने प्रथम घोषित किया गया है.


मात्र मेंटल केल्क्युलेशन से वह मात्र एक-दो सेकंद में बडे बडे अंको के जोडने, घटाने, गुणा और भाग के उत्तर दे पाता है, जो आश्चर्यजनक है.दर असल एबेकस नाम के एक इंस्ट्रुमेंट की मदत से ये सभी गणनायें बडी ही आसान हो जाती है, और फ़िर बाद में अभ्यास से छात्र अपने दिमाग में ही वह गणना कर लेता है, उस उपकरण की मेंटल छबि बना कर. वैसे पिछले दो साल वह चेन्नई मे संपन्न हुए अखिल भारतीय प्रतियोगिता में भी प्रथम रनर अप रहा है, और दो साल पहले कुवालालम्पूर में हुई अखिल विश्व प्रतियोगिता में उसके आयु वर्ग में इंटरनेशनल चेम्पियन का रनर अप, और इंटरनेशनल लेवल पर पांचवा रहा .

आज ही हमनें उसका चेन्नई में ५ जुलाई को होने वाले अखिल भारतीय कोंपीटीशन के लिये फ़ार्म भरा है.उसका ये अंतिम वर्ष है क्योंकि उसने इस साल ग्रेजुएशन कर डाला है इस शिक्षा पद्धती में अपने नवें साल में ही.याने के ये साल उसका अंतिम साल है, इस शिक्षा पद्धति की पढाई में.

यहां एक बात का विशेष उल्लेख करने के लिये ये पोस्ट है. अपने बेटे की सफ़लता में खुश होना और गौरवान्वित होना हर पिता का स्वप्न होता है. मगर उसके साथ जुडी हुई कुछ घटनाओं से हमें हमारे ऊसूलों या वेल्यु को भी परखने का मौका मिलता है, और हम कभी कभी निर्णय लेने के उस मोड पर खडे हो जाते है, जहां पर एक बडी ही पतली रेखा रहती है,जिससे पासे पलट जाते हैं, और ग़म और खुशी का उपहार हमें मिलता है.

दो साल पहले जब चेन्नई में चेम्पियन शिप में रनर अप आने से पूरे भारत वर्ष में चेंपियन बनने की आभिलाषा अधूरी रह गयी थी.आश्चर्य की बात ये भी थी कि चेम्पियन बना था उसका ही मित्र तेजस, जो उसकी ही कक्षा में पढता है.हमने भी यही सोचा कि उसकी मेहनत कम पड गयी होगी या भाग्य नें आज साथ नही दिया तो वर्ल्ड लेवल पर भी प्रयत्न करने में हर्ज़ नही है.

कोंपीटीशन हॊल में जाने से पहले अमोघ मेरे पास आया और उसनें मुझसे एक बडी ही आश्चर्यजनक बात बताई. उस प्रतियोगिता में एबेकस इंस्ट्रुमेंट की मदत से आठ मिनीट में २०० सवाल हल करने थे, जबकि अमोघ का और हमारे भारतीय बच्चों का मेंटल लेवल इतना अधिक कुशाग्र था कि वे मन में ही सवाल हल करने को निपुण हो गये थे.

इसीलिये जब हमारे बच्चों को पता था कि उन्हे उपकरण से करने में थोडा समय लगेगा, बनिस्बत कि दिमाग से करने, तो तेजस नें अमोघ को बताया कि उसके पापा नें उससे कहा है, कि वे वहां पहले दो मिनीट तो मेंटली हल करें, और ऊपर से ये दिखायें कि वे उपकरण से हल कर रहें है.तो वे बाकी बच्चों से थोडा आगे निकल जायेंगे.तो वह क्या करे?

मैं और मेरी पत्नी डा. नेहा अचंभित हो कर सोच में पड गये कि अब हमें क्या निर्णय लेना है. क्या हम अपने बेटे को चीटींग करने को प्रवृ्त्त करें और गलत तरीके से चेम्पियनशीप हथियाई जाये.या जो भी हो , सत्य और अनुशासन की राह पर चल कर जो भी रिज़ल्ट हो उसे स्वीकार करें. इसी उधेडबुन में हम थे कि समय के अभाव के कारण अमोघ हाल में चला गया, हमसे उत्तर लिये बगैर.

अब हम यही सोच रहे थे कि एक ७ वर्षीय बच्चे से हम क्या उम्मीद करें जो यहां वह उचित और सही निर्णय ले.उतने में हाल में एक घोषणा हुई कि कोई भी बच्चा दिमागी तौर पर गणित के सवाल हल नही करेगा, सिर्फ़ उपकरण से ही करेगा., और कोई अगर पकडा जायेगा तो हमेशा के लिये उसे बाहर कर दिया जायेगा.

हम इसी बीच निर्णय ले चुके थे कि जैसे भी हो, उसे सच की राह पर ही चलना चाहिये, मगर इस बात से हम बडा ही चिंतित हो गये, कि पता नही अमोघ नें क्या निर्णय लिया.

जब वह परीक्षा देकर बाहर आया तो सबसे पहले उससे हमनें यही पूछा कि उसने क्या किया?

उस सात वर्षीय बच्चे नें ये कह कर हमारी आंखों में आंसू ला दिये और हमारे सर गर्व से ऊपर उठा दिये कि-

पापा- मैनें सोचा कि ये बात गलत है, और मैं कुछ भी हो जाये चीटींग नहीं करूंगा. हो सकता है, कि आज मैं हार जाऊं मगर मैं गलत काम नहीं करूंगा.

हुआ भी वही. तेजस वर्ल्ड चेंपियन बन गया और अमोघ रनर अप.

चेम्पियन्शिप नही मिलने की उदासी स्वाभाविक ही थी जिसने उस बच्चे को दुखी कर दिया. जैसे कि मैने एक फ़िल्म चितचोर में देखा था, दुख इस बात का नही कि हार गये या पीछे रह गये. मगर रोंग साईड से ओवरटेक कर के गाडी आगे चली गयी थी. उन हताशा भरे क्षणो के बीच में उसनें मुझसे कहा - सॊरी पापा.

मैने और नेहा नें अमोघ से कहा- नही बेटे, तुम ही चेम्पियन हो. You are Real Champion.

भारत लौटने पर मैने अपने कंप्युटर में अमोघ ने तेजस को लिखा एक पत्र पढा, (उसका पहिला पत्र!!) जिसमें उसको बधाई देते हुए अमोघ नें लिखा था- अगले साल तो पूरा मेंटल ही है, तो फ़िर मिलेंगे.

आज उस घटना को दो साल बीत गये हैं. पिछले साल मैं उसे फ़िर नही ले गया.मगर इसी बीच अमोघ दो सालों में दो लेवल की जगह चार लेवेल पास कर के ग्रेज्युएट हो गया है, और तेजस दो ही लेवल कर पाया है.(यहां ये संभव था)इस साल वह भी चेम्पियन बना , मगर छोटी कक्षा में.

मैं भी कभी कभी सोचता हूं , कि क्या अमोघ नें सही निर्णय लिया था. आज कुछ भी हो, तेजस वर्ल्ड चेम्पियन है, और दुनिया यही जानती है, मानती है. आज तक अपने जीवन में मैने भी इसी सत्य की राह पर अपने निर्णय लिये हैं, मगर मैं एक सफ़ल बिज़नेसमन नहीं हूं. ( मूल्यों से कंप्रोमाईज़ नही करने वाला व्यवसाई!!! हा हा हा!!!-हास्यास्पद है ना?)


a. आप ही बताईये, कि क्या सही है , क्या गलत?

b. क्या उसे फ़िर इस साल कुवालालंपूर भेजना चाहिये?

c. क्या अमोघ भी अपने पिता के समान सच की राह पर चलते हुए असफ़लताओं का बोझा ढोयेगा, या फ़िर उसे Survival of Fittest के इस जंगल राज के नियम को मानते हुए, सीधी या टेढी उंगली कर के घी निकालना चाहिये?

d. क्या सच्चे का बोलबाला और झूटे का मुंह काला ये कहावत आज भी चरितार्थ हो रही है?...

बताईये आप सभी प्रबुद्ध जन क्या राय रखते है?
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