Monday, January 12, 2009

जागो सोने वालों, सुनों मेरी कहानी..



आज महान साधक, आध्यात्म के महासागर , युवा जागृति के प्रणेता स्वामी विवेकानंद की जन्म तिथी है.

स्वामी विवेकानंद नें मेरे शैशव काल से मन पर प्रभाव करना प्रारंभ किया था, मगर अनजाने में मैं उनके गुरु स्वामी श्री रामकृष्ण परमहंस से ज़्यादा प्रभावित होता चला गया, क्योंकि जिस आध्यात्म की राह पर मैं चल रहा था, उसमें राजयोग या ग्यानयोग की जगह मेरे अंतरमन की घड़न भक्तियोग के सिद्धांतों के अनुरूप हो चुकी थी, जो बात मुझे काफ़ी बाद में मालूम पडी़.

इसी तारतम्य में, मेरे हरदिल अज़ीज़ मित्र जिसका ज़िक्र मैनें पिछली पोस्ट में किया था, स्वामी जी के पदचिंहों पर इस राह पर आगे बढ गया, जो अभी तक अविवाहित रहा है.मेरे और उसमें इस बात पर भी बेहस होती रहती थी कि गुरु शिष्यों में कौन श्रेष्ठ है. मित्र कहता था कि आज स्वामी जी की ज़रूरत है इस राष्ट्र को, समाज को, युवा पीढी़ को ऐसे ही मार्ग दर्शक की ज़रूरत है.इसलिये वे ज़्यादा श्रेष्ठ है. मेरा मित्र तार्किक और बौद्धिक सोच पर काफ़ी अधिकार रखता था, अतः वह अध्यात्म को लॊजिक के तड़के लगाने के बाद ही स्वीकार करता था. जबकि मैं परिपक्वता की राह पर तर्क के झूलें में गुलांटे मारते हुए चलने की बजाय सीधा अंतिम सत्य पर पहूंचना चाहता था.

इसलिये मेरा मानना था कि स्वामी रामकृष्ण परमहंस का सरल और तर्क से परे आध्यात्मिक ग्यान का मार्ग ही उस समय से आज तक सर्वमान्य और अनुसरण करने योग्य है.

मगर आज की पीढी़ का जो चरित्र है, वह अत्याधुनिक वैग्यानिक गेजेट्स और बौद्धिक कसरतों पर पला हुआ है, और हर चुनौती को आज के बदलते हुए मूल्यों की कसौटी पर तौलता है, जिसमें राष्ट्र, समाज या परिवार से अधिक मात्र स्वयं पर केन्द्रित व्यवस्था है.

इसीलिये , जब आज के परिप्येक्ष में भारत देश के और गंगा जमुनी संस्कृती के स्वस्थ समाज के चरित्र निर्माण के महत्वपूर्ण कार्य के लिये हमें स्वामी विवेकानंदजी की ज़रूरत है,जो युवा पीढी़ को सही मूल्य आधारित दर्शन और मार्ग दर्शन दे सके. हमारे युवाओं को भी चाहिये कि श्री विवेकानंद जी की जीवनी से, और उनके अध्यात्म दर्शन से प्रेरणा लें, और आत्म चरित्र निर्माण और राष्ट्र चरित्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाये.

आज जब मैं ये मान रहा हूं तो वह मेरा मित्र ही आज सक्रिय नहीं है, मेरी जीवन की मुख्य धारा में.

वैसे, इससे भी आगे जा कर मैं ये कहना चाहूंगा कि हमें आज स्वामी जी की बेहद ज़रूरत तो है ही, मगर उससे भी अधिक ज़रूरत है स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी की , जो एक नहीं हज़ारों युवा विवेकानंद निर्माण कर सकें.

स्वामी विवेकानंद के शिकागो व्याख्यान के बारे में यहां देखे...




भारत के भविष्य के बारे में स्वामीजी के विचार..

5 comments:

रविकांत पाण्डेय said...

न सिर्फ़ आज के समय में बल्कि हर काल में रामकृष्ण प्रासंगिक हैं. रामकृष्ण के पीछे उनका अनुभव था जबकि विवेकानंद के पीछे बौद्धिकता जिसमे अनुभव का कुछ ज्यादा योगदान न था.

Alpana Verma said...

स्वामी विवेकानंद की जयंती पर सभी को बधाईयाँ

स्वामी विवेकानंद के बारे में बहुत सुना और पढ़ा है.और कौन इन के जीवन और शिक्षाओं से prabhavit हुए बिना रह सकता है?
मैं ने आज से कई साल पहले छुटपन में दक्षिण में कन्या कुमारी में इन का स्मारक देखा था जो समुन्दर के बीच में एक टापू पर बना था..जहाँ इन के पद चिन्ह हैं..उसी समय से स्वामी जी के बारे में जानने की उत्सुकता रही है.आज फिर से एक बार उन के बारे में आप की पोस्ट में पढ़ा ,धन्यवाद..

Unknown said...

स्वामी विवेकानंद की जयंती पर सभी को बधाईयाँ

डॉ .अनुराग said...

मुझे उनकी कही कई बाते याद रहती है उनमे से एक थी की किसी भूखे आदमी को आप धर्म ज्ञान दोगे तो बड़ा अज्ञान- होगा...दरअसल हर महापुरुष ज्ञान का एक स्रोत्र होता है .हम उसे एक खास समुदाय या धर्म में बाँध कर उसकी कही बातें दूरो तक पहुचने नही देते.....याधिपी मै आर्यसमाजी परिवार से हूँ पर मेरा मानना है की कोई भी व्यक्ति अगर उच्च चरित्रवान है ओर ऐसे बाते कहता है जो देश ओर समाज के हित में हो वो किसी ख़ास समुदाय या धर्म में नही बाँध सकता .

राज भाटिय़ा said...

स्वामी विवेकानंद की जयंती की बधाई देने का क्या लाभ जब उन के कहे अनुसार तो चल नही रहे? जेसे हम पुजा पाठ तो बहुत करते है, तीर्थ यात्रा भी बहुत करते है,लेकिन कभी उस भगवान का कहना नही मानते, तो ऎसी पुजा का क्या लाभ, ऎसी बधाई की क्या जरुरत , तो जागो सोने वालों, सुनों मेरी कहानी.... शायद आप की यह बात ही कुछ लोगो को जगा दे,
धन्यवाद इस सुंदर लेख के लिये

Blog Widget by LinkWithin