आज से कई सालों पहले सन १९५० में जब स्वाधीन भारत का यह संविधान बना तब हम भारतीयों नें अच्छे नागरिक के कर्तव्यों को समझा और उसपर अमल करने की कसम खाई. आज इतने सालों बाद, किसी को भी ये याद नहीं है, मगर अपने मूल अधिकारों से भी आगे बढ कर अपने अपने निजी , राजनैतिक या जातिगत स्वार्थों के लिये लढ़ना, हडताल करना , मारपीट और दंगे करना, आदि याद रहा.
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मेरी आप सब से इल्तेजा है, कि अपने अपने गरेबां में झांक कर क्या देखना गंवारा करेंगे, कि हम इस संविधान की मूल तत्वों से कितने प्रामाणिक है? मेरा मानना है, कि जो भी व्यक्ति इस ब्लोग जगत में है, वह प्रामाणिक तो ज़रूर है, इसीलिये ये गुस्ताखी कर रहा हूं.वह इसलिये कि जब भी कोई लेखक, या कवि या संगीत का तान सेन या कान सेन है,उसका ज़मीर, अखलाक़ , या morality का अपना एक उच्च स्तर होना लाज़मी है, या यूं कहें -prerequisite है.
एक बढिया quote है जो यहां प्रासंगीक है-
The measure of Man's Real Character is what he would Do,if he knew he would never be found out........
2 comments:
दलीप भाई आप ने बहुत सुंदर प्रशन किया है ? हम दुसरो कि तरफ़ तो उंगलिया उठाते है, लेकिन कभी......
मै शान से कहता हूं, मेने अपने देश के किसी भी कानून का कभी भी उलंघन नही किया,ओर देश के बाहर रह कर भी देश को धव्वा लगने वाली कोई बात नही की.
धन्यवाद
वाकई एक महत्वपूर्ण सवाल ....
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