Tuesday, August 25, 2009

सुखकर्ता , दुखहर्ता - गणेश चतुर्थी



सुखकर्ता , दुखहर्ता भगवान श्री गणेश की जन्म दिवस गणेश चतुर्थी पर आप सभी को लेट लतीफ़ का नमस्कार.

हमारे राष्ट्र में और खासकर महा’राष्ट्र’ में हर जगह बडे उत्साह से हर भक्त नें अपने अपने सामर्थ्य से भगवान श्री गजानन की मूर्ती की स्थापना अपने घरों में, ऒफ़िस में और अन्य कार्य क्षेत्रों में ज़रूर लगाई होगी. जो नहीं लगा पायें हों उन्होने भी अपने मन में उस मनोहर मूरत की छबि बसाई होगी.

हमारा परिवार महाराष्ट्रीय संस्कृति और परंपरा का निर्वाह करते हुए हर साल अपने यहां भगवान श्री वक्रतुंड महाकाय की मनोहारी मूर्ती स्थापित करता चला आ रहा है. हमारे पूर्वज करीब २०० साल पहले मालवा के सुबेदार मल्हारराव होल्कर प्रथम के राजगुरु बनके जब इंदौर आये तब से हमारे यहां इस परंपरा के अनुसार ५ दिन के बाद भगवान श्री गजानान की मंगल मूर्ती का विसर्जन कर देते हैं.

आज के दिन सुबह हम सभी परिवार के सदस्य इंदौर के प्रसिद्ध शनि मंदिर के पास गणेश मंदिर जाते हैं, और करीब दो पीढीयों से मिट्टी की ईको फ़्रेंडली मूर्ती बनाने वाले प्रसिद्ध मूर्तिकार खरगोणकर के यहां से मूर्ती लाते हैं. यह मूर्ति विसर्जन करते समय बहुत ही जल्दी जल में घुल जाती है, और इसमें सभी रंग नॊन टॊक्सिक लगाये जाते हैं. वरना आज हर जगह प्लास्टर ओफ़ पेरिस की सांचे में ढली मूर्तीयां मिलती है, जिसपर टोक्सिक पेंट किया जाता है, और जब भी इन्हे शहर के कूंवें , बावडीयों में विसर्जित किया जाता है, तो ये जल में घुलती नहीं है, और प्रदूषण फ़ैलाती है.


वैसे हम दो गणेशजी की स्थापना करते है>



एक दायीं सूंड वाले गणपति ,जिन्हे हम सार्वजनिक झांकी के साथ विराजमान करते हैं.
(पुणेरी पगडी़ धारण किये हुए- ऊपर के चित्र में झांकी)












दूसरे बांयी सूंड वाले गणपति , जो हमारे पूजा स्थान में बिराजते हैं, और उनकी पूजा बडी कडाई से परंपरागत सोवले में याने रेशमी धोती में होती है.(वैसे मुझे बचपन से यह कभी समझ में नहीं आया कि रोज़ रोज़ धुलने वाले कपडे या धोती भला क्यों स्वच्छ होते हुए भी नहीं पहनी जाती थी, बल्कि इतने दिनों से ना धोये, सोवला( सोळं )क्यों चल जाता था.




फ़िर २१ मोदकॊं का भोग लगने के बाद हमें प्रसाद मिलता है, जो पांच दिनों रोज़ दो बार की आरती के बाद ग्रहण किया जाता है.

पहले बचपन में गणेशोत्सव बडी धूमधाम से होते थे, और आज भी होते हैं. गली गली, मोहल्ले मोहल्ले में गणेशोत्सव समितियों का गठन होता था और हर दिन शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे. उन दिनों हम सभी गीत गायन प्रतियोगिता में भाग लेकर कप जीतते थे, एकांकियां और नाटक के मंचन करते थे और तालियां बटोरते थे.

इन्दौर शहर में तो यह उत्सव १० दिन चल कर इसका समापन अनंत चौदस पर होता था, जिसमें नगर के सभी गणमान्य गणेशोत्सव समितियों के (खासकर यहां की कपडा़ मीलों के) स्थापित गणेश जी को विसर्जित किया जाता था बाकायदा झांकीयों के रूप में, जो रात भर चलती थी, और सुबह जाकर विसर्जन किया जाता था.इन झांकियो को एक कार्निवाल सा स्वरूप होता था, और आस पास से , और दूर से टूरिस्ट्स के जत्थे के जत्थे इन्दौर में आते थे.



आज भी कमोबेश समितियां बन रहीं है, और चंदे उगाये जा रहें है.मगर दुख यही है, कि अधिकतर सांस्कृतिक कार्यक्रमों में संकृति या संस्कार के दर्शन होने की बजाये, दिन भर लाउडस्पीकर पर फ़िल्मी धुनें बजती हैं(बीडी जलई ले..) और रात को डिस्को धुनों पर नाच गाना. हां , यहां के मराठी समाज नें ज़रूर अपनी पुरानी परंपरा जारी रखी हुई है, और महंगाई और बीमार मीलों के बावजूद झांकी निकलना जारी है. मैं अपनी दिली कोशिश करके इसके बारे में एक अलग पोस्ट पेश करूंगा.के पास

7 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

वाह आज तो पूरी इंदौरी परंपरा से गणेश उत्सव का विस्तृत विवरण दिया. बहुत लड्डू खाने को मिल रहे हैं आजकल गणेश जी की कृपा से.:) बहुत धन्यवाद.गणेश उत्सव की शुभकामनाएं.

रामराम.

Udan Tashtari said...

गणेश उत्सव की शुभकामनाएं.

कुश said...

प्रसाद का वितरण कब होगा... ये बताइए :)

वैसे आपने सही कहा आजकल फ़िल्मी गानों कि धुनें मात्र बजायी जाती है..

Alpana Verma said...

ganesh utsav ki shubhkamanyen.

bahut hi sundar aur manohari chitr hain.
bahut hi achcha vivaran bhi mila.
''मगर दुख यही है, कि अधिकतर सांस्कृतिक कार्यक्रमों में संकृति या संस्कार के दर्शन होने की बजाये, दिन भर लाउडस्पीकर पर फ़िल्मी धुनें बजती हैं(बीडी जलई ले..) और रात को डिस्को धुनों पर नाच गाना.'
samay ke saath saath 'shraddha ko bhi log 'cash' kar rahe hain ..jo hona nahin chaheeye.

Anita kumar said...

मंगल मूर्ती मौर्या…॥:)मनोहारी आरती तो सुनाते जो पूरे साल हमारे जेहन में रहती है
जय देव जय देव जय मंगल मूर्ती, जय मंगल मूर्ती
दर्शन मात्रे मन कामना पूर्ती, जय देव्……॥

Anonymous said...

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