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इस हफ़्ते बडी़ गहमा गहमी थी. जैसे पिछले हफ़्ते राखी के त्योहार का सुरूर चढा, इस हफ़्ते जन्माष्टमी का. और साथ ही हमारे सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां का स्वतंत्रता दिवस!! क्या बात है!!
दोस्तों आपको याद ही होगा, भारत का स्वतंत्रता दिवस १५ अगस्त को होता है.
अरे आप बुरा मत मानिये! मैं तो जरा मजे ले रहा था. मैं तो नेताओं के बारे में सोच रहा था. बचपन में आर.के. लक्ष्मण का एक बढिया कार्टून देखा था जो अब तक जेहन में है.उसमें गांधीजी के एक बडे़ फ़्रेम लगे चित्र को देख कर उसके नीचे लिखी नामपट्टी को एक नेताजी पढ रहे थे झुक कर, तो उनका पी ए फ़ुसफ़ुसाकर कह रहा था - सर, गांधीजी हैं ये!!!
वैसे आजकल कोई भी स्वनामधन्य नेता १५ अगस्त नहीं भूलता. हर कद्दावर नेता इस अवसर को भुनाने की पहले सोचता है. मगर हर पार्टी नें अपने अपने नेता बांट लिये है. कांग्रेस के नेताओं द्वारा आयोजित कार्यक्रम (या प्रायोजित?)के बेनर पर उस नेता और मित्र मंडल के बडे बडे फोटूओं के साथ सोनिया और राहुल के चित्र के साथ दो चार छोटे छोटे चित्र गांधीजी, नेहरूजी, और शास्त्री जी के मिल सकते हैं(कभी भगत सिंह के भी). वैसे ही भाजपा के कार्यक्रम में सावरकरी,उपाध्यायजी आदि के चित्र अटल जी और अडवानी जी के साथ नमूदार हो सकते है.याने इन सभी राष्ट्रीय संतों को भी बांट लिया गया है.
शहीदों की बात चल पडी है, तो ये बात गौर करने लायक है, कि हम भगतसिंह, राजगुरु आदि को तो याद कर लेते हैं, (अच्छी बात है) मगर अन्य कई शहीदों को भूल जाते हैं जिन्होने भी इस मातृभूमि के लिये अपने प्राणों की आहूति दी है.याने उन्हे मीडीया का भी साथ नहीं मिल पाता , क्योंकि शायद आजकल की नई पीढी के टाई लगा कर एयरकंडीशन ओफ़िस में कीबोर्ड पर लिखने वाले पत्रकार (उसपर अंग्रेज़ी के जर्नलिस्ट्स-याने करेला और नीम चढा) इन के नाम तक ही नही जानते , उनके हीरोईक कारनामों का तसव्वूर करना तो दूर ही की बात है.
ऐसा ही एक नाम है- शहीद मदनलाल धिंग्रा का.
जब हमारे यहां भारत में गांधीजी, नेहरूजी,सरदार पटेल, मौलाना आज़ाद आदि अहिंसा और सत्याग्रह के मार्ग पर चल कर और चंद्रशेखर आज़ाद, भगतसिंग,सुभाशचंद्र बोस आदि अन्य विचारधारा से प्रेरित राष्ट्रभक्त अपने प्राणों को न्योछावर करने के लिये इस महा संग्राम में कूद पडे थे, वहीं ग्रेट ब्रिटन में भी एक और ब्रिगेड के साथी आज़ादी की इस क्रांति के दहकते ज्वालाकुंड में आहूति देने के लिये कटिबद्ध थे -
स्वातंत्रवीर सावरकर, श्यामजी कृष्णवर्मा, मेडम भिकाजी कामा, सरदार अजितसिंग, सरोजिनी नायडू के भाई वीरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय ,रामबिहारी बोस, चंपकरमण पिल्लई आदि .और उनमें एक नाम बोल्ड अक्षरों के साथ लिखा गया है, मदनलाल धिंग्रा का.
एकदम निश्चयी मन के , त्याग की प्रतिमूर्ति , देशभक्ति के लिये धधकते हुए जज़बात जिसके नस नस में भरे हुए थे ,ऐसे इस क्रांतिवीर के पराक्रम और देश के लिये दी गयी कुर्बानी को इस कृतघ्न देश नें याद नहीं रखा.
मैं यहां आपको बता दूं , कि इस उपेक्षित शहीद शिरोमणि को ब्रिटिश सरकार नें १७ अगस्त सन १९०९ को फ़ांसी पर लटका दिया था, और आज इस दिन को १०० वर्ष पूरे हो गये हैं. क्या आपने कहीं किसी अखबार में(इक्के दुक्के को छोड कर)इस महत्वपूर्ण जानकारी का और शहीद दिन की शताब्दी दिवस का ज़िक्र पाया है?
वैसे मैं यहां इस अमर शहीद की जीवनी के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं लिखूंगा, क्योंकि आज वह प्रासंगिक नही होगा शायद, मगर ये ज़रूर बताना चाहूंगा कि उसे किस लिये फ़ांसी की सज़ा दी गयी और इस नौजवान में जो देशभक्ति का जज़बा था उसकी प्रेरणा उसे कैसे मिली?
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एक सिविल सर्जन के बेटे, अमृतसर के सुखसुविधा से संपन्न परिवार में जन्म लेकर क्रांतिवीर बनने तक का सफ़र लंदन में शुरु हुआ जब मदनलाल लंदन के युनिवर्सिटी कॊलेज से सिविल इन्जिनीयरिंग में डि़प्लोमा कर रहे थे.सन १९०५ के आसपास का समय था.वहां के इंडिया हाउस में युवावस्था के रंगीन मस्ती भरी शामें बिताने जाया करते थे मदनलाल.रोमांटिक गाने,मित्रों के बीच सपनों की दीवानी दुनिया की चुहुलबाज़ी, बौद्धिक बहसें आदि दिनचर्या थी.देशभक्ति की भावना का दूर दूर तक पता नहीं था.
उन दिनों साथी क्रांतिकारीयों के साथ सावरकरजी की बम बनाने और अन्य शस्त्रों को हासिल करने की कोशिशें चल रही थी तो मदनलाल भी उनके संपर्क में आये, और वहां से उनके जीवन धारा में एक रेडिकल बदलाव आया, और वे भी शामिल हो गये इस आज़ादी की लढाई में.
उसके बाद उन्होने लोर्ड कर्ज़न वाईसरॊय का कत्ल करने की कोशिश की, मगर वह दो बार बच गया.बंगाल के पूर्व गवर्नर ब्रॆमफ़िल्ड फ़ुल्लर को मारने की योजना भी नाकाम रही क्योंकि मदनलाजी वहां लेट पहुंचे. फ़िर उन्होने कर्ज़न वाईली को मारने का निश्चय किया.जिस मीटिंग में योजना बनाई गयी उसमें बिपिनचंद्र पाल भी मौजूद थे. सावरकर नें कठोरता से मदनलाल को कहा कि अगर सफ़ल होकर नही आये तो कभी भी मुंह नही दिखाना.
१ जुलाई १००९ को रात को मदनलाल वाईली से मिले और उनसे कुछ खास बात करने के बहाने उनके समीप पहुंचे .११ बजकर २० मिनीट पर उन्होने जेब से कोल्ट पिस्टल निकाल कर कर्ज़न वाईली पर करीब से दो गोलीयां चलाई, जिससे वह जगह पर ही ढेर हो गया.ये देखकर एक पारसी डॊक्टर कावसजी लालकाका उसे बचाने दौडा तो उस पर भी गोली चलाई , और खुद पर भी चलाने ही वाले थे कि उन्हे पकड लिया गया.
उन्हे पकड कर जब मेजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया तो उन्होनें शान से कहा कि मैं आपका कानून नहीं मानता. जिस तरह से जर्मन लोगों का ब्रिटेन पर राज करने का कोई अधिकार नहीं वैसे ही आप लोगो को भी हम पर राज करने का अधिकार कैसे हो सकता है?
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दुर्भाग्य से इस देशभक्त के पार्थिव शरीर को वापस नहीं दिया गया और इसी जेल में दफ़ना दिया गया.
बाद में सन १२ डिसेंबर १९७६ को भारत सरकार के प्रयत्नों के कारण उनके पार्थिव शरीर लिये हुए शवपेटी को भारत लाया गया, और जीते जी तो नही , मगर फ़ांसी के कई सालों के बाद शहीद मदनलाल धिंग्रा के पार्थिव शरीर को अपने स्वतंत्र देश की मिट्टी नसीब हुई.
ऐसे शूर और वतन पर मर मिटने वाले जांबाज़ मदनलाल धिंग्रा की पावन आत्मा को मेरा नमन.........
3 comments:
दिलीप जी
सादर वन्दे !
17 अगस्त 1909 को इस भारतीय सपूत को कर्जन वायिली को गोलियों से भून कर इस देश के युवा की गूंज को फाँसी पर लटका दिया गया था,
हम सभी भारतवासियों को इन जैसे क्रांतिकारिओं का ही स्मरण दिवश मानना चाहिए न कि मौकापरस्त नेताओं का, आपके इस ज्ञानपूर्ण श्रद्धांजलि को मेरा शत शत नमन.
रत्नेश त्रिपाठी
"शहीद मदनलाल धिंग्रा जी को नमन और आपको इस आलेख के लिये बहुत आभार. आप आजकल हैं कहां?
रामराम.
'वैसे आजकल कोई भी स्वनामधन्य नेता १५ अगस्त नहीं भूलता. हर कद्दावर नेता इस अवसर को भुनाने की पहले सोचता है'
--आप ने यह बात बहुत सही लिखी है.सहमत हूँ.
--शहीद मदनलाल धिंग्रा जी के बारे में सच कहूँ तो मुझे भी आज से पहले इतनी जानकारी नहीं थी.
आप ने जो चित्र और jaankari दी उसके लिए आभार.
हमें इन जांबाज शहीदों के बलिदान को नहीं भूलना चाहिये..मगर भूल रहे हैं तभी इतने उपद्रव और झगडे भाषा, और प्रांतवाद के नाम पर नागरिक कर रहे हैं.
.शहीद मदनलाल धिंग्रा जी को शत शत नमन और shradhanajali .
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