Wednesday, April 1, 2009

गुडी पाडवा और नव वर्ष की शुभकामनायें


पिछले दिनों जब फ़िर बाहर था, तो कुछ अभिलाषायें मन की मन में ही रह गयी. चाहता था कि आप सभी अपनों को , स्वजनों को नव वर्ष की बधाईयां दे दूं. दुख ये यूं हुआ , कि हमारे देश में कॆलेंडर के नव वर्ष पर जनवरी में जो उल्ल्हास , जोश , उमंग हम सभी में , विशेषकर युवाओं में रहता है, वह हिंदुओं के नव वर्ष, मराठीयों के गुडी पाडवा पर, सिंधीयों के चेटिचंद उत्सव पर हमारा उत्साह क्यों नहीं दिखता.

वैसे सारे महाराष्ट्र में गुडी पाडवा बडी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है, इसलिये यहां हर जगह छुट्टी होती है, जबकि मेरे बेटे अमोघ, जो यहां के प्रतिष्ठित पब्लिक स्कूल डेली कॊलेज में पढता है, नव वर्ष पर छुट्टी नही थी.

चलो , देर आयद दुरुस्त आयद, आप सभी को .साईड बार में अवश्य लगा दी थी मगर दिल है कि मान नही रहा था, इसलिये फ़िर से रूबरू दे दी!!!

ये चित्र हमारे घर में स्थापित गुडी का है, जिसमें कि जैसे आप सब को पता ही होगा , एक दंड होता है, जिसपर गुडी के प्रतीक के रूप में एक चांदी के लोटे को उल्टा करके साडी पहनाई जाती है. एक मंगलसूत्र भी होता है, सौभाग्य की निशानी,और नीम के कुछ पत्ते.


आपने देखा ही होगा कि ये जो गुडी है, एक पेडस्टल पर बाकायदा फ़िट की हुई है, अन्यथा , अधिकतर सभी घरों में बांस का दंडा ले कर उस पर साडी ’मिरे’ कर के याने कि करीने से घडी कर के बांधी जाती है.मगर जैसा कि हर जगह इन्स्टॆंट चीज़ो का ज़माना आ गया है, मुम्बई में पिछले कुछ सालों पहले एक उद्यमी युवा महिला नें कुछ नया करने की चाह में अलग अलग साईज़ में गुडीयों की निर्मिती की , जिसके कारण मुंबई जैसे शहर में जगह और समय के अभाव में ये परिकल्पना या कंसेप्ट लोगोंने हाथो हाथ उठाया और उस महिला का नाम काफ़ी मशहूर भी हुआ. संयोग से वह महिला, मेरे पत्नी डॊ, नेहा की सगी मौसेरी बहन ज्योति थी. और थी इसलिये कि दुर्भाग्य से पिछले साल युवावस्था में कॆन्सर से उसका निधन हो गया.

हमारे यहां आज श्रीखंड बनता है, मगर हमें सुबह सुबह परंपरा के अनुसार कडवे नीम की कोमल पत्तीयों की चटणी भी खानी पडती है, जिसे हम छुटपन में बडे मुंह बनाकर,रोते कलपते खाते थे( कभी कभी नज़र बचाकर थूकने का भी प्रयत्न करते थे, मगर एक बार पकडे जाने पर दादाजी की मार पडी थी)

आज हम बडे हो गये हैं(ऐसा हमें लगता है),नही खायेंगे तो कोई टोकने वाला नही है, पिताजी के अलावा. उन्होने पूरे जीवन में हम पर कभी हाथ नही उठाया, तो अपने पोतों को क्या मारेंगे. ये पीढी के सरकने का एक संकेत है.

7 comments:

Udan Tashtari said...

नववर्ष की बधाई. संस्मरण पढ़ना अच्छा रहा.

इंदौर चाहकर भी नहीं आ पा रहा हूँ. अगली ट्रीप का वादा १०० % रहा.

परमजीत सिहँ बाली said...

्नववर्ष की बधाई।अच्छा संस्मरण है।

ताऊ रामपुरिया said...

कडूआ नीम की चटनी खाने के बाद ्श्री खंड खाने मे जो आनन्द आता है वो बिना नीम की चटनी खाये थोडी आयेगा?

रामराम.

संगीता पुरी said...

अच्‍छा आलेख .. गुडी पाडवा यानि नव वर्ष दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

Alpana Verma said...

नव वर्ष दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
sansmaran padha ,kuchh naya bhi janne ko mila..
shri-khand to bahut hi swadisht hota hai..yahan Amul ka milta hai...different flavours mein.

apne-teej-tyohaaron ko yaad karna achcha lagta hai.
abhaar

डॉ .अनुराग said...

संस्मरण दिलचस्प है.....पता नहीं था आप इन्दोर है ...पिछले सल् जाना हुआ था ..

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

परिवार के सँस्मरण और गुडी पडवा की स्व. ज्योति जी की नई इजाद लिये आलेख अच्छा लगा - नव वर्ष की बधाई !
- लावण्या

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