हमारे कई ब्लोगर साथियों नें ये जानने की उत्कंठा व्यक्त की है, जैसे ताऊ नें ये पूछा है, कि क्या इसका कोई सोफ़्ट्वेयर है. राज भाटिया जी को सबूत भी चाहिये, और अन्य जैसे अर्श,अल्पनाजी,उडन तश्तरी,संगीताजी इस रोचक तथ्य को जानने को उत्सुक हैं. हालांकि, इतिहास मेरा विषय कभी नही रहा है, मगर चूंकि पिताजी एक जानेमाने Indologist और संस्कृत के विद्वान और प्राचीन संस्कृति के , साहित्य के शोधक रहे हैं, मुझे हमेशा ही इन बातों में रुचि रही है, और उनके पास आने वाले बृहद शोध प्रबंधों और मूर्धन्य विद्वानों के रिसर्च पेपर्स को खंगालने की आदत भी. पूणे में एक ऐसे ही विद्वान है, जिनका नाम है, डॊ. पद्माकर विष्णु वर्तक.पेशे से सर्जन हैं और एक नर्सिंग होम भी चलाते है. मगर साथ ही में उन्होने प्राचीन ग्रंथों, वेदों , उपनिषदों और इतिहास पर पूरा संशोधनात्मक अध्ययन किया है.साथ में आपने अपने जैसे अन्य अभ्यासू और जिग्यासू विद्वानों के साथ वैदिक संशोधन मंडल का भी गठन किया है जिसमें इन ग्रंथों में छुपे हुए रहस्य, विग्यान संबंधी रोचक और तथ्यात्मक अध्ययन किया जा रहा है. पिताजी के साथ साथ मैं भी इस संस्था से कई सालों से जुडा हुआ हूं, और इसीलिये अपनी ओर से मैंने भी कुछ प्रयास किये है, अन्य विषयों पर भी. आपने अपने एक मराठी प्रबंध पुस्तक वास्तव रामायण में भगवान श्री राम के चरित्र, रावण और अन्य पात्रों और घटनाओं को इतिहास की दृष्टी से देखा है और विवेचना की है.
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मेरे मित्रों, सबसे पहले हम यहां इस बात की विवेचना में पडने की आवश्यकता नहीं समझते कि क्या वास्तव में श्री राम एक ऐतिहासिक पुरुष थे या नहीं. यह बात हज़ारों वर्षों से परंपरा, साहित्य, लोकगाथायें, पुरातात्विक और एतिहासिक घटनाओं से स्वयंसिद्ध रही है. हमारी विवेचना के साथ साथ इस सत्यता की परख अपने आप भी रेखांकित होती जायेगी. जब हम किसी भी घटना, या काल या विवरण का वस्तुपरक अध्ययन या शोध करते है, तो हमें उसे मोटे तौर पर तीन विधाओं के प्रमाणों की कसौटी पर परखना होता है: 1. पुरातात्विक प्रमाण (Archeological Evidence) 2. साहित्यिक प्रमाण ( Literary Evidence) 3. ज्योतिषिय और खगोलीय प्रमाण ( Astrological & Astronomical Evidence) 1. पुरातात्विक प्रमाण : दुर्भाग्य से, हमें राम की जीवनी पर पुरातात्विक प्रमाण नहीं मिलते. वर्तमान अयोध्या के पास किये गये खुदाई के प्रयासों से हम लोग अधिकतम ईसा से १५०० से २००० वर्षों तक ही पहुंच पाये है. कार्बन डेटिंग के माध्यम से हमें उत्खनन से प्राप्त वस्तुओं की आयु सीमा का मान हो पाता है. मगर , हमारे देश में और देश के बाहर भी कई ऐसे स्थान मिलते है, जहां कि लोक कथाओं मे या लोकोक्ति में राम जी के जीवन संबंधी वर्णन मिलते हैं. मगर ये सभी तथ्यात्मक प्रमाण नहीं माने जा सकते. 2. साहित्यिक प्रमाण : सौभाग्य से हमारा इतिहास और संस्कृति की धरोहर रहे है हमारे प्राचीन ग्रंथ , जिनमे प्रमुख हैं – चारों वेद, उपनिषद, पुराण, वाल्मिकी रामायण, वेद व्यास रचित महाभारत, और अनेक ऋषि मुनियों द्वारा लिखे गये ऐतिहासिक और आध्यात्मिक ग्रंथावलीयां आदि…. अब हम अपनी अगली कडी़ में इस प्रमाण पर विस्तृत चर्चा करेंगें. चूंकि हम बात को प्रमाणित करने का प्रामाणिक प्रयत्न कर रहें है, अतः थोडा गहराई में जाना आवश्यक हो जाता है. अगर आपमें से कोई जानकार इसमें कोई नई जानकारी देकर कोई नयी रोशनी डालना चाहे तो स्वागत ही है……. मिलते हैं ब्रेक के बाद……
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7 comments:
हम आप की बात से सहमत हैं. "दुर्भाग्य से, हमें राम की जीवनी पर पुरातात्विक प्रमाण नहीं मिलते. वर्तमान अयोध्या के पास किये गये खुदाई के प्रयासों से हम लोग अधिकतम ईसा से १५०० से २००० वर्षों तक ही पहुंच पाये है. कार्बन डेटिंग के माध्यम से हमें उत्खनन से प्राप्त वस्तुओं की आयु सीमा का मान हो पाता है."
वास्तव में हम जिसे अयोध्या मान कर चल रहे हैं, वह वास्तविक अयोध्या नहीं है.
राम काल्पनिक पात्र भी रहे हों तो भी भारतीय इतिहास और जीवन को बदलने में उन की भूमिका से इन्कार नहीं किया जा सकता।
भाई राम कैसे भी हों..हुये हों ..ना हुये हो..हमारे तो रोम रोम बे बसे हैं..दिन मे जब तक सौ पचास बार रामराम नही हो जाये..कुछ अधूरापन सा लगता है.अगर वो नही भी हुये तो भी हमारे लिये तो हुये हैं.
रामराम.
इतने विस्तार से ये ऐतिहासिक जानकारी बताने के लिये आभार
- लावण्या
Please write something more on this subject. This is very intresting and informative. If possible, do write on indology too. These knowledges are buried somewhere and it is our responsibility to bring it back to our people.
thanks for great work !
यह तो आप ने राम जन्म तिथि सम्बंधित बहुत ही अच्छी जानकारी बतायी है.
डॉ.वर्तक के बारे में जानकार सुखद आश्चर्य हुआ की एक सर्जन होते हुए उन्होंने अपने इस शोध कार्य के लिए भी समय निकाला.
उनके द्वारा एकत्र की गयी जानकारी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे और राम जन्म के बारे में सही तिथि के प्रमाण जन जन तक पहुँच सकें और उनके भ्रम दूर हों,यही आशा है.
अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी.
[आज कल नेट पर बहुत कम आना हो पता है इस लिए पोस्ट पर देर से आने पर माफ़ी चाहूंगी.]
मेरा तो मानना है कि राम ऐतिहासिक पुरुष हैं और वाल्मीकि उनके समकालीन हैं। वाल्मीकि रामायण में सीता की खोज के लिये जिन स्थानों का सुग्रीव ने वर्णन किया है उनके विषय में भी शोधकार्य होना चाहिये।
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