Tuesday, November 18, 2008

नूपुर के दिल से

दिल ढूंढता है फ़िर वही फ़ुरसत के रात दिन...
गुलज़ार साहब क्या खूब फ़रमा गये है. इन दिनों व्यस्तता का ये आलम रहा कि ब्लोग से दूर रहना पडा़, तो हर पल हर घडी़ सामने वो रंगीन खाका गुलज़ार होता रहा, और हम तरसते रह गये आपसे बतियाने को, हाले दिल सुनाने को.

हमारी बिटिया नूपुर जो अभी पूना में है, उसे किसी वजह से अस्पताल में भरती होना पडा़ और जब उसे लेकर इन्दौर आये तो हम फिर से जमींदोस्त हो गये, याने शुद्ध हिन्दी में गिर पडे और बडी़ हिन्दी हो गयी हमारी. ( पता नही क्या सोच कर ये कहावत हमारे यहां बोलने का चलन हो गया है, या शायद भोपाल से इम्पोर्ट हुई है खां.एस्ये केस्ये केने लग गये मियां के बिलावजा पिनपिनाने लग गयी ज़बान)

चलो स्वास्थ्य लाभ कर रहा हूं. बडी मज़ेदार व्यवस्था हो गयी है. बिटिया जो चल फ़िर नहीं सकती, मेरी पोस्ट अभी लिख रही है.और मैं चल फिर सकता हूं मगर लिख नही सकता क्योंकि हाथ के पंजे के बल ज़ख्म खाया गया है,

लोग काटों से बच के चलते है,
और हमने फ़ूलों से ज़ख्म खाये है.


तो लिखवा रहा हूं.ब्लोग की दुनिया का नया प्रयोग शायद!!!(अमिताभ को छोड़ कर)

कोइ बात नही , रात बाकी , बात बाकी... अगली बार.....
courtsey Noopur.

सलाम मेरा, नूपुर के दिल से. पापा ठीक हो जाने तक वो वेदव्यास और मैं उनकी गणपति.( I also share same sense of humour as my papa does!!!)

मेरा दिल बडा़ ही खुश हो रहा है आज, क्योंकि मेरे भारत के चंद्र यान नें अपनी तस्वीरें भेजना शुरु किया है..

गर्व से कहो हम भारतीय हैं!!!!



चुनावी महौल् है, और् सांपनाथ् और नागनाथ अखाडे़ में हैं. दोनों की कमीज़् सफ़ेद नहीं और कीचड़ उछालने की प्रक्रिया चल रही है. ये कारटून् देखें जो हमारे यहां के दैनिक नई दुनिया से साभार् लिया है.

























एक और कारटून जो सत्य वस्तुस्थिती बयां करती है. (नई दुनिया से साभार)


दस्विदानिया...

3 comments:

डॉ .अनुराग said...

आप शीघ्र ही स्वास्थ्य लाभ करे .यही दुआ है...कार्टून आपके लेख पर एक पकड़ बनाते है.....गुलज़ार की पहली दो लाइने तो तमाम उम्र का दर्द रहेगी ......

Unknown said...

तबीयत का ख्याल रखे आप और नुपूरजी दोनो.
जीतना बहुविध लेखन आप कर रहे है वैसा तो ब्लाग की दुनिया में कम ही देखने को मीलता है.संगीत,सायरी,फ़िल्म,साइंस,रिस्ते,और इस सब को आपस में एक सूत्र में पीरोता आपका प्रवाहमान लेखन.इस वैरायटी को मेंतेन करना मुसकिल होता है.नाम के आगे कर देखकर ही लगता है की आप महारास्त्रीयन है (गर्व से कहता हू की मे भी मराठी हू और बरोडा मे जनमा हू) और बिना कीसी झीजक के कह सकता हू की मराठीभाशी लोगो ने ही इस देश की संक्रुती को बचा रखा हे.लीखते रहीये और खूब लीखते रहीये अपका लीखा वेसे ही फ़ैलता जायगा...वैसे ही जैसे मेण्दी हसन केते हे..कुबकु फ़ैल गई बात पजीरायी की...

Anonymous said...

I like your blog

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