Saturday, September 13, 2008

हिंदी, मात्र भाषा या मातृ भाषा...



आज हिंदी दिवस है.

अपने इस नये ब्लोग पर कई दिनों से आगाज़ करने का मन बना रहा था किसी अच्छे लेख से. आज वह मिल गया इस लिये यहां आपके लिये हाज़िर है हिंदी के लिये अनुभव किये गये कुछ ऐसे पीडादायक विचार,जो लिख गये है दैनिक भास्कर के लिये श्री संजय पटेल ने.

श्री संजय पटेल हिंदी के साहित्य क्षेत्र के एक जाने माने, स्थापित हस्ताक्षर है. विगत कई दिनों से वे अथक (कृपया अथक को रेखांकित करें) प्रयास में लगे हुए हैं की हिंदी में कुछ अच्छा कार्य किया जाये. इसके लिये उन्होने किसी मंच का मोहताज़ होना गंवारा नही समझा, और हिंदी की सेवा में वे लगे रहे हर क्षेत्र में . चाहे वह अखबार मे गद्य हो, पद्य हो, या नैतिकता एवं राष्ट्रीयता का कोई मुद्दा हो, फ़िल्मी संगीत की कोई जाजम हो,हर वह जगह जहां हिंदी का अधिकार पूर्वक उपयोग हो सकेगा , वहां किया.Advertisement की दुनिया में भी हिंदी लेखन को महत्व,प्राधान्य देते रहें हैं .ब्लोग दुनिया में भी छा कर प्रेम बटोर रहे ही हैं.चूंकि ख्यातिप्राप्त करने के बजाय उनके कई दूसरे पावन उद्देश्य है, इसलिये निस्वार्थ भावना से वे हिंदी के कर्मठ सिपाही का कार्य कर रहे हैं.

कृपया लेख पढें और अपने विचारों से अवगत करायें...मूल लेख का एक छोटा सा सम्पादित अंश ही यहां प्रस्तुत है.मूल बातों को ही यहां लिखा गया है.

कम नहीं... अधिक नाम ’कमा’ रही है हिंदी !

हिंदी की दुर्दशा के लिये हम हिंदी वाले ही दोषी है. हिंदी कैसी हो, कैसी बोली जाये, कैसे जुडाव हो हिंदी का नयी पीढी से, इस बारे में एक तयशुदा नीति अपनानी पडेगी.

अंग्रेज़ी के विस्तार से भयभीत होने की ज़रूरत नही है, यह रोज़गार का आसरा भर है.

भाषा समभाव और सहृदयता सिखाती है.विस्तृत होना उसका चरित्र है और उसी में भाषा की सार्थकता भी है. हम हिंदी के प्रचार के लिये अमीन सायानी को क्यों सन्मानित नही कर सकते? हिंदी को जन जन तक पहूंचाने में जाने माने कमेंट्रेटर जसदेवसिंह और सुशील दोशी का अवदान किसी साहित्यकार से कम क्यों आंका जाना चाहिये? पीयुष पांडे को हिंदी का रहनुमा क्यों न माना जाये या तारे जमीं पर का मां गीत लिखने वाले प्रसून जोशी को युवा हिंदी गीतकार के रूप में नवाज़ा क्यों न जाना चाहिये?

जब तक पूर्वाग्रहों के ये बंधन नहीं टूटेंगे हिंदी मात्र एक भाषा रहेगी , मातृ भाषा नही बन पायेगी!!


श्री संजय पटेल के उपरोक्त लेख की अंतिम बात सबसे महत्वपूर्ण और सारगर्भित है- मात्र भाषा या मातृ भाषा, आप खुद ही तय कर लें...

10 comments:

Udan Tashtari said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपके इस ब्लॉग का भी स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.

Kavita Vachaknavee said...

नए चिट्ठे का स्वागत है. निरंतरता बनाए रखें.खूब लिखें,अच्छा लिखें.

शोभा said...

अच्छा लिखा है. स्वागत है आपका.

Sajeev said...

शुभकामनायें दिलीप भाई

दिलीप कवठेकर said...

शुक्रिया दोस्तों, आपके हौसला अफ़ज़ाई से आगे बढने की कोशिश् करूंगा. वर्ड् वेरिफ़िकेशन हटा लिया गया है.

कुछ व्यक्तिगत कारणों से पोस्त थोडा संपादित किया गया है. क्षमा.

महेन्द्र मिश्र said...

हिन्दी दिवस पर हार्दिक शुभकामना
गर्व से कहे हिन्दी हमारी भाषा है
जय हिन्दी .

شہروز said...

श्रेष्ठ कार्य किये हैं.
आप ने ब्लॉग ke maarfat जो बीडा उठाया है,निश्चित ही सराहनीय है.
कभी समय मिले तो हमारे भी दिन-रात आकर देख लें:

http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
http://hamzabaan.blogspot.com/
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/

प्रदीप मानोरिया said...

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है बधाई कृपया मेरे ब्लॉग पर पधारें

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

हिन्दी ब्लोग जगत मेँ
आपका स्वागत है -
सँजय भाई जैसे गुणीजनोँ की बातेँ
यहाँ सुनकर खुशी हुई !
-लिखते रहीये ,
शुभकामना सहित,
- लावण्या

Anonymous said...

सच लिखा है कि मात्र भाषा नहीं हिंदी मातृ भाषा है।

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