
(मेरी बहन प्रतिभा नें भेजी हुई राखी!!)
रक्षा बंधन के इस पावन और पुनीत पर्व पर ब्लोग परिवार की सभी बहनों को शुभकामनायें, बधाई, और इस भाई की ओर से प्रणाम!!
ब्लोग दुनिया से जुडने के एक साल के बाद जब भी मैं आज पीछे मुड कर देखता हूं तो पाता हूं कि इस नई विधा नें अंतर्जाल के माध्यम से कितने सारे नये परिवार मुझे दिये. वसुधैव कुटुंबकम की परिकल्पना इतना अच्छा और सार्थक उदाहरण इससे बेहतर क्या होगा?
मेरी सबसे पहली पोस्ट नश्र हुई थी ( दिलीप के दिल से )-२३ जुलाई २००८ को और सबसे पहले टिप्पणी दी थी मेरे मानस अनुज श्री संजय पटेल नें और दूसरी सुश्री अल्पना वर्मा नें.संजय भाई तो मुझे इस ब्लोग जगत में लाने के प्रेरणा स्रोत ही रहें है, और इस ब्लोग वास्तु के नाम - दिलीप के दिल से और अमोघ के मानस शब्द की संकल्पना के रचयिता भी वहीं है .सुश्री अल्पना जी नें पहले ही कमेंट से जो उपयोगी और सार्थक टिप्स दी वो आज तक जारी है, यानी हफ़्ते दर हफ़्ते इस वास्तु पर जो भी क्रमवार विकास हो रहा है,- तकनीकी और सुरमई - इसमें उनके सुझावों और सहयोग से यह सभी संभव हो रहा है.
दोनों के साथ साथ , मेरे कई और मित्रों ने भी मार्गदर्शन दिया जैसे हिन्दयुग्म के सजीव सारथी, जिन्होने मुझे अपने गाये गानों को ब्लोग पर डालने की सलाह दी.मैने अब तक मात्र अल्पनाजी को ऐसा करते हुए देखा था .आप ही नें कहा कि जब हम सभी अपनी रचनायें पोस्ट करते हैं तो वो भी आपका सृजन ही तो है. उसके बाद, मुझे हमारे सभी के प्रियजन ताऊ का भी मारग्दर्शन मिला, अपने ब्लोग के स्वरूप को और बेहतर और रंगीन करने के लिये. साथ ही एक मित्रवत आग्रह भी कि आपसे जितना भी संभव हो,अपने पसंदीदा साईट्स पर जाकर टिप्पणी करें उससे हमारे ही साथियों का उत्साहवर्धन होगा , साहित्य की सेवा होगी, और प्रेम और संवेदनाओं के साये तले एक परिवार की अवधारणा बनेगी.
और भी मेरे मित्र हैं जिन्होनें हमेशा मेरे दोनों ब्लोग पर आकर अपनी जीवंत टिप्पणीयों से मुझे नवाज़ा है; लावण्या दीदी, समीर लाल, अनुराग शर्मा , डा. अनुराग, अर्श,हरकीरत जी, रंजु जी, और अन्य कई.
हम सभी अलग अलग क्षेत्र से जुडकर, अलग अलग विचार धारा से अभिप्रेत, अलग अलग देश, धर्म, जाति, और उम्र के बंधन से निकलकर, ब्लोग दुनिया के इस नये देश के नागरिक हो गये हैं, और अंतर्जाल के महीन वर्च्युअल धागे के बंधन से जुड कर एक परिवार का हिस्सा बन गयें है.
हम नागरिक कुछ तो अलग है, दीगर जमात से.
हम कलाकार है, लेखक हैं , कवि हैं, चित्रकार हैं, फोटोग्राफ़र हैं, और अब हमारा एक अलग वजूद हो गया है, जो देश विदेश के दूसरे बुद्धिजीवीयों से थोडा अलग यूं है, कि हम सभी भावनात्मक रूप से करीब हैं. याने की हम तर्क के धरातल से उठ कर संवेदनाओं और एहसासत के रूहानी स्तर पर जाकर दिमाग की जगह दिल से जुडे हैं.
इसीलिये हमारे बीच अब एक अलग और विशिष्ट संस्कृति का प्रादुर्भाव हो गया है.
क्या आप सहमत हैं?
( अभी अभी मेरे पिताजी नें मुझे संस्कृति की उनकी व्याख्या दी- संस्कारों द्वारा परिष्कृत कृति ही संस्कृति है!!)