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Saturday, January 31, 2009

तुझमें रब दिखता है, यारा मैं क्या करूं .....?

जीवन में कई लम्हे आते है, छोटे छोटे से, मुख्तसर से, मगर दिल पर बडा़ प्रभाव छोड़ जाते है.

इतने दिनों के बाद इंदौर पहुंचा . पुणे में बिटिया नुपूर के साथ तीन दिन की छुट्टीयां बिताई. सोचा था कि कहीं पिकनिक पर जायें. मगर मेरी तमन्ना थी कि पुणे से बेहद नज़दीक ही है सिंहगढ़ का वह ऐतिहासिक किला देखा जाये ,जिसे शिवाजी महाराज नें अपनी कर्मभूमी बनाया था. इतिहास से सिर्फ़ बोध लेने का ही उद्येश्य नही है, वरना सबक के साथ नई पीढी़ को भी हमारे गौरवशाली अतीत और शौर्यगाथा से अवगत कराना ज़रूरी है, ताकि हमारी नई पौध का एक राष्ट्रीय चरित्र निर्मित हो सके, जिसमें हमारे हकों के अलावा कर्तव्यों का भी मानस पर गहरा अंकन हों, और हमारे दैनंदिन कार्यों में वह स्वचलित सिस्टम की तरह परिलक्षित हो.

हम दोनों निकल तो गये, साथ में छोटी बहन प्रतिभा का पुत्र दुष्यंत, बडे़ भाई साहब विजय भैया का पुत्र सिद्धार्थ और उसकी नई वधू वंदना, और मेरे मित्र अविनाश का पूर्ण परिवार .मगर संयोग से सिंहगढ़ के लिये ऊपर जाने वाली सड़क में जाम लगने के कारण हम नीचे ही अटक गये( २५ जनवरी की छुट्टी में सभी तो कहीं कहीं निकले थे)

अब सोचा क्या करे?

तो देखा पास ही एक छोटी सी झील दिखी. दरसल वह एक बांध था, और शायद महान प्रतापी और शूर बाजीराव पेशवा नें मस्तानी के लिये बनवाया था.(Not Sure) हमनें सोचा चलो यहीं चलते है, और हम उस झील की किनारे से बनी पगदंडी से काफ़ी आगे निकल गये, और निसर्ग के उस हसीन नज़ारे का आनंद उठाने लगे.



शहर के भीड भरे , कोलाहल भरे माहौल का मखौल उडाता वह मंज़र ,शांत शांत बयार के पृष्ठभूमी में चिडियाओं की चहचहाट (मराठी में कहते है-किलबिल)आंखो के ज़रिये मन के किसी कोने में छुपा लिया.

लौटते समय पास ही के गांव से गुज़रने की सोची, क्योंकि पेडों के झुरमुट में से एक छोटे मंदिर का शीर्ष मुकुट दिख रहा था.(कळस)वह एक विठ्ठल मंदिर था और बहुत छोटे से मंदिर में विठ्ठलजी की सुंदर सी मूर्ती विराजमान थी. दोपहर का समय था, वहां सुस्ताने बैठ गये, लगा कुछ भजन हो जाये तो जैसे ही एक भजन शुरु किया . गांव वालों ने कहीं से ढोलक , छोटा तानपूरा और मंजिरे लाकर दे दिये, और बस हम सभी भक्तिभाव की गंगा में उतर कर स्नान करने लगे. दुष्यंत नें ढोलक सम्हाली(पहली बार) और बाकी हमने भजन गाकर भगवान के दरबार में अपनी हाज़िरी दी.



इन्दौर आया तो पत्नी डॊ. नेहा नें कहा कि आपके नहीं होने से ये छुट्टीयां नीरस रहीं, तो मैंने कहा कि मैं तो हमेशा ही टूर पर रहता हूं . मेरे उपस्थिती की , अभाव की तो आदत ही पड़ गयी होगी.( दूसरी बिटिया मानसी जिसकी इंजिनीयरिंग की सेमिस्टर परिक्षा होने की वजह से हम सभी नहीं जा पाये थे.)

बात आई गई नही हुई. कल रात सोचा कि कोई फ़िल्म ही देख आयें. स्लम डॊग भी देख ही ली थी, तो पत्नी बोली, मुझे रब नें बना दी जोडी फ़िर से देखनी है. तो क्या था एक बार हम उस फ़िल्म को देखनें चले गये ,जिसे पहले भी देख चुके थे.

फ़िल्म के आखरी भाग नें मुझे झकजोर दिया, जिसमें तानियाजी को पति में रब दिखाई दिया. नेहा बोली ये संभव है. मेरा मन संभावना तलाश करने की जुगत में मानसिक वल्गनायें करने लगा. हम दोनों पढे़लिखे ,तर्क के पतीली में प्रेम की वह बघार नहीं दे पाये शायद.

मगर अपने लंबे वैवाहिक जीवन में आई परेशानीयों और अभावों के बावजूद सकारात्मक स्नेह और प्रेम बंधन के भीगे भीगे फ़ेविकोल के जोड़ का जो अहसास हमें हुआ, वह काफ़ी था आगे के कुछ और साल हाथ में हाथ डाले रिश्तों के झूले में पवन की बहार तले झूलते ,जीवन के यथार्थ के थपेडे सहते हुए हंसी खुशी हसीन पल गुज़ारने के लिये.

आज सुबह सुबह जब मैं नेहा को भोपाल के लिये इंटरसिटी एक्सप्रेस में स्टेशन छोड आया तो नेहा नें मुझे एक ही कार्य सौंपा- मेरे ९ वर्षीय बेटे अमोघ को तैय्यार कर स्कूल में पहुंचाने का काम. राजीव गांधी तकनीकी विश्वविद्यालय के बोर्ड ऒफ़ स्टडीज़ की मीटींग के लिये मेरी प्रोफ़ेसर पत्नी को सुबह जाकर रात को वापिस आना था.

जैसे तैसे अमोघ को दूध नाश्ता करवा कर , बिटिया मानसी द्वारा मेनेज करवा कर अभी अभी ये पोस्ट लिखने बैठा तो आंखों के सामने सभी गुज़रे साल घूम गये.


पत्नी के एक दिन नहीं रहने का अहसास पहली बार हुआ( रात को देखी फ़िल्म का असर था शायद). हर व्यक्ति वास्तव में विवाह के पहले अपनीं मां द्वारा और बाद में अपनी पत्नी द्वारा मेनेज होता चला आया है. अपन तो घुमक्कड दरवेश. फ़कीरी मन को लिये दुनिया में पुरुषार्थ दिखाने निकल पडे़ थे और पत्नी अपनी कामकाजी जिम्मेदारीयों के बावजूद ,मेरी, मेरे बच्चों की और मेरे ८६ वर्षीय पिताजी की देखभाल करते करते कब इतनी ऊंचाईयों पर पहूंच गई इसका बोध अभी अभी जाकर हुआ.



मेरे मन में वह विठ्ठल की मूर्ती की धूंधली सी छवि फ़िर से स्पष्ट होती चली गई, और मैं कह उठा-


तुझमें रब दिखता है, यारा मैं क्या करूं ...... ?
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