मुसाफ़िर हूं यारों.. ना घर है ना ठिकाना,
मुझे चलते जाना है, बस चलते जाना....
जीवन की इस सच्चाई से रूबरू हुआं हूं अभी अभी... जी हां.
पिछले रविवार को अचानक इजिप्ट की राजधानी काइरो या अल-काहिरा जाना पडा, प्रोजेक्ट के सिलसिले में. अब तो आना जाना लगा ही रहेगा, और एक मुसाफ़िर की तरह मैं बस्ती बस्ती पर्बत पर्बत गाते हुए बंजारे की तरह निकल पडा़.
मगर क्या मालूम था कि किस्मत में कुछ यूं भी लिखा है, कि आप पीछे मुड कर देखें कि जीवन कितना प्रेशियस या कीमती है.सुएज़ शहर से काईरो आते हुए गाडी का ज़बरदस्त एक्सिडेंट हो गया और आपका ये मित्र बच गया. याने बॊटम लाईन यही है कि आल इस स्टिल वेल!!!
हुआ यूं कि इजिप्ट के एक बडे शहर सुएज़ के पास हमारी साईट है, जहां एक फ़ेक्टरी बन रही है, जिसमें मैं वेयरहाऊस इंजीनीरिंग के एक भाग के निर्माण प्रक्रिया के लिये गया हुआ था.सुएज़ शहर सुएज़ केनाल या नहर के लिये विश्व विख्यात है.यहीं से एक मानव निर्मित नहर से बडे बडे जहाज़ रेड समुद्र से मेडिटेरियन समुद्र जाते हैं, और भारत से एक सीधा रास्ता युरोप के लिये खुल जाता है, बजाय साऊथ अफ़्रिका से होकर गुज़रने के.
बात अभी पिछले बुधवार की है.साईट से लौट कर सुएज़ केनाल देखने हम सुएज़ शहर में घुसे, और लौटने लगे काहिरा की ओर, ताकि शाम तक हम काहिरा पहुंच जायें , जहां हम होटल में रुके थे. मेरे साथ कंपनी गेलेक्सी के एक प्रोजेक्ट इंजिनीयर इंचार्ज अविनाश भी थे.
सुएज़ से काहिरा का हाई वे 130 KM का ६ लेन है और इतना बढियां है, कि हर कोई १४०-१६० की स्पीड से गाडी चलाता है.
ज़ाहिर है, शहर छोडते ही ड्राईवह एहमद नें 160 KM/Hr की गति पकड ली, और अगली सीट पर बैठे बैठे मुझे ठंड में भी पसीने छूटने लगे.इसके पहिले पहली बार जब अबु धाबी से दुबई गया था तो 140 की स्पीड अनुभव की थी. मगर सच कहूं, मैंने घबरा कर एहमद से स्पीड कम करने को कहा. उसने थोडी कम ज़रूर की, मगर अचानक सामने एक आर्मी का ट्रक जो जा रहा था उसे कट मारने में चूक हो गयी.पैर ब्रेक की जगह एक्सीलरेटर पर पड गया और हम धडाम से उस ट्रक में घुस गये.
एक ज़ोरदार टक्कर हुई जिससे हमारी गाडी उछल कर ट्रक के पिछवाडे में अटक कर आधा कीलोमीटर घसीटता चला गया. भगवान की कृपा ही समझो, आगे की सीट पर बैठे होने के बावजूद, सीट बेल्ट पहनने की वजह से मुझे उस इम्पॆक्ट का असर कम लगा. मैं उस क्षण से कुछ ही सेकंद पहिले विडियो शूटिंग कर रहा था अपने छोटे केमेरे से, तो थोडा मानसिक रूप से रिफ़्लेक्स की वजह से मैने अपने शरीर को उस आघात के लिये तैयार कर लिया, मगर पीछे बैठे मेरे मित्र अविनाश चूंकि सीट बेल्ट नहीं पहने थे, और थोडा सुस्ता रहे थे, एकदम से अपने आप को सम्हाल नहीं पाये और उन्हे थॊदी ज़्यादह चोट आये. ड्राईवर एहमद के तो पंजे में फ़्रेक्चर हो गया, और सर में चोट आयी.
चूंकि गाडी को ज़्याद क्षति पहुंची और गेट भी जाम हो गये, आर्मी के जवानों ने आनन फ़ानन में हमें गाडी से उठाया. दर्द या शॊक का एहसास भी कुछ मिनीट नही रहा, और जैसे कि हम फ़िल्म देखते हैं , या सपना, मैं अपने आपको और दूसरों को गाडी में से निकालने की मशक्कत को एक त्रयस्थ याने तीसरे शख्स़ की नज़रिये से देख रहा था.
बस , किसी तरह से काहिरा से दूसरी कार मंगवाई, सूरज डूबने चला था.फ़िज़ा में ठंडक और घुलने लगी थी. हम इंदौर से लाये स्वादिष्ट नमकीन खाते हुए, अंदरूनी दर्द के बढते हुए एहसासात लिये हुए काहिरा के एक अस्पताल के लिये रवाना हुए..
संक्षेप में, जिसको राखे सांई, मार सके ना कोई. थोडा़ एक फ़ुट ज़्यादा हो जाता तो कुछ भी हो सकता था. चलो , जान बची ,लाखों पाये. अब आप से फ़िर रू ब रू होते रहेंगे.इंशा अल्लाह!!
इंशा अल्लाह. ताऊ की पहेलीयां बूझेंगे, अल्पना जी के गाने और कवितायें सुनेंगे, लावण्या दीदी के संस्मरण, समीर जी की सिगरेट की पन्नी में लिखी हुई जीवन की सच्चाईयां, अनुराग जी के होस्टल के किस्से, अनुराग शर्माजी के पोडकास्ट, मनीष कुमार के और आवाज़ के सजीव सारथी और सुजॊय के संगीतमय पोस्टें, राज भाटिया जी के जोक्स, यूनुस भाई के मधुर और अनोखे गीत लोकगीत,और जिसका इंतज़ार रहता है.. संजय भाई के संस्मरण और OLD MONK के सारगर्भित कमेंट्स का.. तो फ़िर से अविरत चलते रहेंगे.
आखिर सच ही तो कहा है कि - मुसाफ़िर हूं यारों, ना घर है ना ठिकाना, मुझे चलते जाना है, बस चलते जाना...
तो देखिये , उस मंज़र की कुछ झलकियां , जो आपके लिये, अगर समय निकाल सकें तो..
ये पंक्तियां लिखते लिखते समाचार मिला कि पुणे में ओशो अश्रम के पार जर्मन बेकरी में एक आतंकवादी विस्फ़ोट हुआ. मैंने ताबड़तोब पुने फ़ोन लगाया , क्यों कि मेरी पत्नी, बेटी नुपूर और बेटा अमोघ इन दिनों वहीं हैं. पता चला वे कुशल हैं, लेकिन उस समय वे वहां से केवल आधा किलोमीटर दूरी पर थे.
ALL IS STILL WELL!!