काफ़ी दिनों बाद आपसे मुखा़तिब हूं. इस बार ज़रा बाहर था, मुम्बई तक काम के सिलसिले में गया था. आपबीती आपके नज़र कर रहा हूँ .
सीन -१ ( मुम्बई )
सुबह मुम्बई सेंट्रल पहुंच कर मैने जब टॆक्सी वाले को कहा की दादर जाना है, तो उसने दादर का पता पूंछा.मैने कहा - शिवसेना भवन के पास,(मेरा होटल वहीं है), तो वह चौंका और जाने के लिये मना करने लगा. आपनें तो सुना, पढा़ ही होगा, कि श्रीमान राज ठाकरे को कल रात ही गिरफ़्तार किया गया था. मुझे पता नहीं था. वह ही नही, कोई भी टॆक्सी वाला वहां जाने के लिये तैय्यार नहीं हुआ.पता यह भी चला कि रात में राज ठाकरे के गुण्डों ने उत्तर भारतीय चालकों की टॆक्सीयां के कांच भी फ़ोडे थे.कहीं कोई मारपीट भी हुई थी .
मैं परेशान सा सोचने लगा कि क्या किया जाये, तो एक हिम्मतवाला ड्राईवर होटल से थोडा पहले छोडने को राज़ी हुआ. किस्मत से होटल के पास कोई गतिविधि नही देख कर टॆक्सी को घुमा कर होटल छोडने को जब मेरी गाडी मुडी ही थी, कि अचानक गली में से कुछ युवकों का हुजूम निकला, और वे नारेबाज़ी करते हुए मेरी टॆक्सी की ओर बढे. मैं समझ गया की ये वही उपद्रवी हैं जिनके बारे में अब तक कहा गया है.बहस करना व्यर्थ था, फ़िर भी साहस जुटा कर मैं टेक्सी से बाहर आकर उनसे मराठी में बातें कर उनका ध्यान बांटने का यत्न कराने लगा. लेकिन उससे पहले ही हमारी गाडी के विंडस्क्रीन को तोड़ वे आगे बढ़ने लगे. कुछ कांच के तुकडे मुझे भी लगे. टेक्सी वाले के प्रति अपराध बोध से मन ही मन लढते हुए मैं अनायास ही उन लड़कों से प्रतिक्रिया स्वरुप पूछ बैठा- तुम सब ये क्यों कर रहे हो? उसमें से एक लडके ने मुड़ कर बड़ी ही तल्खी से कहा- राज साहब को पकड लिया है. इस सरकार को कब अक्ल आयेगी ? मेरे मुंह पे शब्द आए थे - राज ठाकरे को कब अक्ल आयेगी ?
मगर तब तक मुझे अक्ल आ गयी थी की चुप रहने में ही भलाई है, मेरी. उनका क्या? उनमें राज ठाकरे के दो तीन ही आदमी होंगे, बाकी सब तो भीड़ थी. बिना शख्सि़यत के, बिना चहरे के. व्यवस्था के प्रति , समाज के प्रति आक्रोश की अभिव्यक्ति के अवसर को भुनाते हुए भेड़ों की भीड़. मैं सकते में पड़े हुए टेक्सी वाले को पीटने से बचा नहीं पाया, और आत्मरक्षा के लिए, आत्मसन्मान की बली चढाते हुए,सामान छोड़ होटल भागने की तैय्यारी में लग गया. सामान कुछ ज़्यादा नहीं था. पिटते हुए उस टेक्सी वाले ने चिल्ला कर कहा - भैयाजी , आपका सामान?
एक आम भारतीय की तरह , मैं स्वार्थ के लबादे को ओढ़ भागने का मन बना रहा था, और वो टेक्सी चालक मेरे ही सामान के लिए फिक्रमंद हुआ जा रहा था. मैंने शर्मिन्दा हो उस भीड़ से उस गरीब को छोड़ने की मराठी में याचना की, जो भाग्य से सफल हुई, क्योंकि तब उस भीड़ को एक बस दिख गयी थी. वो हुजूम पुरुषार्थ की एक और आजमाईश करने आगे निकल गया. मैं शर्मसार हो टेक्सी वाले को ५०० का नोट दे ,सामान ले होटल की दिशा में अग्रसर हुआ.
चित्र - १
जहाँ मेरा प्रोजेक्ट चल रहा है वहाँ भी कंपनी की बसों की तोड़फोड़ का चित्र !!
चित्र - २
शाम को होटल के पास ही लगे शिवसेना भवन के सामने का दृश्य - शिवाजी पार्क के समीप इस सड़क पर इस समय आम दिनों में भीड़ ही भीड़ रहती है. कार, बसें ऑफिस से लौटते हुए लोगों की भीड़. मगर आज , यहाँ अघोषित कर्फ्यू जैसा हे कुछ माहौल है.आम आदमी के मन में डर का यह सजीव चित्रण है.
सीन -२ ( पुणें )
चूंकि उस दिन कुछ भी काम नहीं हो पाया , तो मैं अपने पुणें के प्रोजेक्ट के लिये निकल पडा़. पुणें में मेरे बहन के देवर रहते हैं, और उनके आग्रह पर मैं रात उनके यहाँ ही ठहर गया. वे जन्म से ही पुणें के रहवासी है, और वहाँ के साँस्कृतिक परिवेश के एक जागरुक प्रहरी भी.
देर रात जब राज ठाकरे की बात चल पडी , तो मैनें अपने साथ हुए हादसे की बात निकालकर मेरे मेज़बान से कहा कि इन जैसी घटनाओं से मराठी संस्कृति की एक अलग चाबी जन मानस में बन रही है, जो वस्तुस्थिति से बहुत ही भिन्न है. इससे, एक और आशंका के अंदेशे से इनकार नही किया जा सकेगा कि कुछ इन तरह का बैकलैश गैर मराठी प्रान्तों में भी पनप सकता है. मायावती का बयान इन भय को और मज़बूत करता है, और भारत के अनेकता में एकता के सांकृतिक ताने बाने को छिन्न भिन्न करता है.
तो मेरे मेज़बान नें गंभीर हो कर मुझसे प्रतिप्रश्न किया- किस संस्कृति कि हम बातें कर रहे हैं जनाब? ज़रा ठहरिये , कह कर उन्होंने अपने सामने वाले फ़्लॅट से एक षोडसी युवती को बुलाया. मैं चौंक गया. पिछली बार जब मैं उससे मिला था तो वह एक चुलबुली सी, उन्मुक्त नदी सी लड़की थी, मगर आज उसके चेहरे पर भय की छाया के साथ साथ निराशाजनक उदासी का वास था. एकदम बुझी बुझी सी, ठहरी हुई आँखें एक अलग ही वेदना लिए हुए थी. आगे जो कड़वी सच्चाई सामने आयी तो मेरे तो होंश ही उड़ गए.
उनके बिल्डिंग में कुछ ही महीने पहले तीन फ़्लॅट में बिहार के कुछ विद्यार्थी आकर रहने लगे थे. वे वहाँ कोई अच्छा सा कोर्स कर रहे थे. आम तौर पर पुणें में , या महाराष्ट्र में अमूमन लड़कीयों के साथ युवकों का व्यवहार अच्छा ही रहता है. छेड़छाड़ आदि हरकतें कोलेज या स्कूल के स्तर पर भी कहीं कहीं दिख जाता है, मगर आम सड़क पर या गली मोहल्ले में एक परिवार सा मेलजोल होने से शाम या देर रात तक लड़कियां बिना रोक टोक या परेशानी से घिमाती हुई नज़र आ जायेंगी.
मगर जब से ये बिहार युवक वहाँ आए, उन्होंने अपने ही परिसर में उद्दंड और ऊशृन्खल व्यवहार से लड़कीयों और महिलाओं का गुज़रना ही दूभर कर दिया. इन निरीह सी लड़की के तो जैसे पीछे ही पड़ गये थे वे लोग. करीब ६ महीने से वे उसे जो परेशान कर रहे थे, फब्तियां कस कर अश्लील से हावभाव कर उसे लज्जित कर रहे थे कि उस लड़की का तो मानसिक संतुलन ही बिगड़ गया. और तो और , उनको समझाने या डाटनें वालों को भी गाली गलौज से सामना कर प्रताडित होना पडा. अब आलम यह है कि वहाँ खौफ के से माहौल में वहाँ के मूल रहवासी रह रहे हैं और अन्दर ही अन्दर यूपी या बिहार के लठैत संस्कृति के प्रति विद्रोह के स्वर उठ रहे हैं.ये एक Isolated Case नहीं है, ऐसी घटनाएँ अब मुम्बई पुणें , और अन्यत्र कहीं भी मिल जायेंगी.
मैं तो ठगा सा ही रह गया......
ये किस भारत वर्ष की हम बात कर रहें है. पहले किसे दोष दिया जाए? यूपी,बिहार के लठैत संस्कृति के भारतीयकरण को, या इस असंतोष के वातावरण का राजनैतिक फायदा उठाने वाली राज ठाकरे की मानसिकता को? पहले अंडा या मुर्गी?
राज ठाकरे से ये कहने का एक मन करता है, कि भाई, तू तो यहाँ नया खिलाड़ी है. तेरी बराबरी कहीं लालू यादव, मुलायम सिंग यादव या मायावती की गुन्डागिर्दी से भला हो सकती है? अराजकता का इतने सालों का अनुभव इन सब का तगडा है, राज (ठाकरे) की अराजकता अभी शैशव काल में ही है.
दूसरा अंतरमन पूछता है कि अहिंसा के थ्योरी का प्रादुर्भाव बिहार से ही शुरू हुआ है ये कितनी विरोधाभासी बात है ? हमने खुद को कितने हिस्सों में बांट दिया है.धर्म, प्रांत ,जाति, अमीर गरीब, भाषा ... अखंड भारत कहां है?
आप क्या कहते है? कौन तगडा है? कौन सही और कौन ग़लत ? ये ही सिर्फ़ दो विकल्प बच गये हैं?
आम आदमी और राष्ट्रीयवाद के अमन के कबूतर के लिए कोई ठिकाना और है?
जायें तो जायें कहां, समझेगा कौन यहां, दर्द भरे दिल की जुबां...
एक और खबर छपते छपते...
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10 comments:
aap jaise log hi raaj aur oonake gundo ko badhawa dete hain. aap oon desh drohiyon ki wakalat kuchh chhut put ghatnawon se de rahe hain. aapko yaad hoga Gateway of India par ek marathi yuvak ne ek ladaki ko molest kiya aur baad me oose goli maar di. laanat hai marathiyon ki sanskriti aur vichar dhaara par. jo ek paagal ke vahashipan ko logically porve karne par aatur hain. aap marathiyon ki chuppi aur aapki lekhani sochane par majboor kar deti hai ki Shivaji ji bhumi me hi shayad koi dosh hai.
कृपया मेरे पहले दो लेखों को पढ कर ही विचार बनायें.
अन्तिम वाक्य भी पढें...
आपकी बात को पूरी तरह समझ रही हूँ । पुणे में मेरा मायका १९७६ से है । जानती हूँ कि पुणे में लड़कियाँ कितना सुरक्षित अनुभव करती थीं । मेरी बेटी भी वहाँ पढ़ चुकी है । जैसा आप कह रहे हैं वैसा होते बहुत बार देखा है । मुम्बई भी स्त्रियों के लिए काफी सुरक्षित हुआ करता था । परन्तु अपने शहर की संस्कृति को बचाने के लिए हम अन्य प्रदेशों के लोगों को आने से नहीं रोक सकते । शायद जब किसी युवक को किसी लड़की को छेड़ते देखें तो उसे रोक सकते हैं । जो सैनिक शहर को बंद कर सकते हैं वे यह तो अवश्य कर सकते हैं ।
बचपन से मराठी पड़ोसी रहे तो मराठी समझ भी सकती हूँ । परन्तु कल यदि मुझे मुम्बई में रहने से रोका जाए तो बहुत दुख होगा । यदि सभी बाहर के लोग अपना धंधा लेकर मुम्बई से चले जाएँ तो क्या मुम्बई मुम्बई रह जाएगा ? महाराष्ट्र को पहले जैसा सुरक्षित महाराष्ट्र बनाने के लिए शायद कानूनों का कड़ाई से पालन करना होगा । किसी को भी, चाहे वह मराठी हो या कोई और कानून तोड़ने का साहस नहीं करने देना ही एक इलाज है ।
आपको व आपके परिवार को दीपावली की शुभकामनाएं ।
घुघूती बासूती
गुंडागर्दी चाहे बिहारी छात्रों की हो या राज ठाकरे के उठाईगीरों की - बंद होनी चाहिए. अगर पुणे में बिहारी खुले-आम गुंडागर्दी करते हैं और मुम्बई में मनसे के उठाईगीरे तो एक बात तो साफ़ हुई की इन दोनों ही शहरों में पुलिस और प्रशासन अपनी जिम्मेदारी उठाने में नाकाम रहा है. बेहतर होगा की प्रशासन अपनी जिम्मेदारी समझे और महाराष्ट्र के गौरवशाली अतीत को यूं पी-बिहार जैसा प्रशासन-रहित या असम-कश्मीर जैसा जंगल-राज बनने से रोके.
दीपावली के शुभ अवसर पर आप सभी को परिजनों और मित्रों सहित बहुत-बहुत बधाई। ईश्वर से प्रार्थना है की वह आपको शक्ति, सद्बुद्धि और समृद्धि देकर आपका जीवन आनंदमय करे!
सच में आम आदमी और राष्ट्रीयवाद के अमन के कबूतर के लिए कोई ठिकाना नहीं बचा है.
और जो छपते छपते का व्हीदियो लगाया है वो तो बिहार में आम बात है.
गुंडागर्दी चाहे बिहारी छात्रों की हो या राज ठाकरे के उठाईगीरों की - बंद होनी चाहिए
विचारों का आदन प्रदान ही इस ब्लोगकर्म का उद्येश्य है.
चिरंजीव जी के टिप्पणी का सहिष्णुता से उत्तर देना चाहूंगा.
शिवाजी की भूमि में दोष निकालने वाले लोग एक घटनाक्रम को लेकर इतने विचलित हो जाते हैं कि याद ही नही रहता कि वे उसी लठैत संस्कृति की शैली में त्वरित टिप्पणी दे जाते हैं.
नरेन्द्र मोदी के लिये महात्मा गांधी की भूमि में दोष नही निकाला जा सकता.आतंकवाद का गढ़ लेबल किये गये आज़मगढ़ के लिये कैफ़ी आज़मी और महापंडित राहुल सांकृत्यायन की भूमि को दोष?
राज ठाकरे मराठी नही है. वह आदमी भी मराठी नही था जिसने मुम्बई में लडकी को मोलेस्ट किया था.(देखा जाये तो विदेशी दृष्टी से तो वह एक भारतीय था!!)
आतंकवादी कोई मराठी या बिहारी नही होता, ना ही हिन्दु या मुसलमान,वह होता है मात्र एक अपराधी.
आतंकवाद या वर्चस्ववाद एक ही सिक्के के दो पहलू है. बुश भी इसी लाईन में खडा है.
मराठीयों की संस्कृति पर लानत भेजने वाले ऐसे महानुभावों का ही तो डर है. प्रतिक्रिया के Vicious Circle में जाने से हमें अपने आप को ही रोकना ज़रूरी है.
परस्पर विरोधी घटनाओं की आंखों देखी यहां पर लिखी है,स्थितप्रद्न्य हो कर.कोशिश है कि
यहां इस ब्लोगकर्म के माध्यम से हम यह विसंगतियां दूर करें तो कुछ भला ही होगा.
ज्योत से ज्योत जगाते चलो,
प्रेम की गंगा बहाते चलो
"राज ठाकरे से ये कहने का एक मन करता है, कि भाई, तू तो यहाँ नया खिलाड़ी है. तेरी बराबरी कहीं लालू यादव, मुलायम सिंग यादव या मायावती की गुन्डागिर्दी से भला हो सकती है? अराजकता का इतने सालों का अनुभव इन सब का तगडा है, राज (ठाकरे) की अराजकता अभी शैशव काल में ही है.…" बहुत सही लिखा है…
आप ने सचाई को खोल कर रख दिया है।
दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएँ। दीपावली आप और आप के परिवार के लिए सर्वांग समृद्धि और खुशियाँ लाए।
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