Thursday, September 30, 2010

मंदिर या मस्ज़िद बनाम देश की तरक्की?....

आदाब अर्ज़ है.

आज छः महिने के बाद इस ब्लोग पर रू ब रू हो रहा हूं.

पिछले दिनों कैरो मे था और आज ही अपने वतन लौटा हूं. वतन लौटने की खुशी के साथ एक मसला और दरपेश आया तब से जब मुंबई में विमान उतरा.आज आज़ादी के बाद का सबसे अहम मुद्दे पर सारे देश में भय, संदेह और घबराहट का वातावरण था.बाबरी ढांचा और रामलल्ला की भूमी से संभंधित जितने भी मसाईलें थे, वे मिसाईल बन कर आम भारतीय के दिलो दिमाग में सुनामी बन के कहर बरपा रहा था.

एयरपोर्ट की सिक्युरिटी से लेकर, सडकों पर पुलिस की जगह जगह मौजूदगी का दृष्य़ मुंबई और इंदौर दोनो जगह था.साडे तीन बजे से सडकें सुनसान हो गयी.किसी अनजान घटना की आशंका नें पूरे मुल्क के सभी नागरिकों को अपने गिरफ़्त में ले लिया था.

जब कल कैरो से रात को निकला था तो मेरे साईट का मुख्य इंजिनीयर वायेल मुझ से पूछ बैठा कि ये क्या बेवकूफ़ी है? क्या आपके यहां हिंदू और मुसलमानों के सामने क्या अब यही इश्य़ु रह गया है?क्या धर्म बडा है या देश? उससे फ़िर एक बडी बेहस सी चल पडी और उसनें मुस्लिम आतंकवाद पर एक अच्छा खासा लेक्चर दे दिया जिसे मैं अलग से दो तीन दिन में आप से शेयर करूंगा.

चलो , अब जब Cat is Out of Bag, मैं सोचता हूं बीच का जो फ़ैसला हुआ है, वह किसी एकतरफ़ा फ़ैसले से तो बेहतर ही है. चलो कहीं बहस या सिलसिलेवार वार्ता की गुंजाईश तो रहेगी. अभी आप मेडिया के हर न्युज़ चेनल को देखने जायेंगे तो पायेंगे की हर जगह राजनीतिक और धार्मिक नेताओं में शाब्दिक फ़्री स्टाईल कुश्तीयां हो रहीं हैं, और एंकर उन्हे ऐसे लढा रहे हैं जैसे मुर्गों की लढाई हो.



मेरा १० वर्ष का बेटा अमोघ भी काफ़ी चिंतित था. फ़ैसले से पहले उसने कह दिया कि पापा, हमारे देश में पहले से ही इतने मंदिर हैं ,मस्ज़िद हैं, अगर एक नही बनेगा तो क्या हो जायेगा? मैं चौंक पडा,कि क्या यह सोच नयी पीढी के सभी बच्चों की होगी- क्या हिंदु क्या मुसलमान?

इसलिये मैं तो अब यही मानता हूं कि दोनॊं पक्ष सुप्रीम कोर्ट में जायें. वहां वकीलों की जूतमपैजार २० साल तक चलती रहे, ताकि हम अपने देश के निर्माण में अब और ज़्यादा समय इन बातों में व्यर्थ ना करें.और २० साल के बाद पूरी एक पीढी बदल चुकी होगी. शायद उसे इस मुद्दे में निसंदेह कोई दिलचस्पी नही होगी.धर्म नितांत निजी मामला रहेगा और इन्शा अल्लाह भारत इस पूरे जगत में एक बेहद ही ऊंचा स्थान प्राप्त कर चुका होगा....

आमीन....

मैं तो जनाब मेंहंदी हसन खां साहब की यह मौजूं गज़ल सुनने जा रहा हूं..(मेरे देश के लिये)

खुदा करे के मुहब्बत में ये मकाम आये,
किसी का नाम लूं लब पे तुम्हारा नाम आये.....

अभे चलते चलते एक और कार्टून (लहरी) आया है, मेरे अनुज मित्र संजय पटेल की ओर से>>>>
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