अर्धनारीश्वर नटराज..
मेरी पिछली पोस्ट पर मैने समयाभाव के कारण दो विषयों पर एक साथ पोस्ट की थी, जिसके कारण , विश्व महिला दिवस पर मैने कुछ पूछा था उस पर प्रतिक्रिया कम आयी.
मगर क्या करूं, इन दिनों लगभग हर हफ़्ते तीन दिन बाहर हूं. अभी अभी नागपुर जा कर आया, जहां साले के बेटे की जनेऊ थी और साथ ही प्रोजेक्ट का काम भी. फ़िर मुम्बई और पुणें.
मैने एक बात आपको अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के संदर्भ में बताई नही, वह ये कि इन दिनों मैं एक अंतरराष्ट्रीय महिला के साथ काम कर रहा हूं. युरोप के फ़ेशन परिधान के एक बडे चेन ग्रुप नें इंदौर के पास पिथमपुर में एक गारमेंट कारखाना डाला है, जहां हर दिन ६००० वस्त्र बनेंगे छोटे, बडे, विशेष कर महिलाओं के लिये ,सिर्फ़ युरोप मार्केट में एक्सपोर्ट के लिये.
पिथमपुर हिन्दुस्तान का डेट्रोइट कहा जाता है, क्योंकि यहां ओटोमोबाईल इंडस्ट्री के बडे बडे नामचीन ब्रांडस के कारखाने है.कायनेटिक होंडा स्कूटर, आइशर मोटर्स,हिन्दुस्तान मोटर्स, ब्रिजस्टोन,एल एंड टी केस (भारी मशिनेरी),बजाज टेम्पो,आदि.साथ ही में कपास का बेल्ट होने के कारण धागे से लेकर गारमेंट बनाने के कारखाने है.उसी की कडी में ये फ़ेक्टरी जोइंट वेंचर में डाली गयी है जिसकी मुख्य कार्यपालक अधिकारी (C E O ) है मिस राया, जो इटालीयन है. ( संयोग से हमारे देश की सरकार की CEO भी इटालियन ही है!!)
हालांकि इस कंपनी के प्रेसिडेंट भी है श्री गुप्ता , मगर उनकी हालत श्री मनमोहन जी जैसी ही है. पूरे प्रॊडक्शन की , तकनीकी मशिनरी और प्लांट के लिये मॆडम ही जिम्मेदार है. मुझे इस प्लांट में स्ट्रक्चर्स ,स्पेस फ़्रेम केनोपी, मटेरीअल हॆंडलिंग ऒटोमेशन ,और अन्य कामों के डिज़ाईन और इंस्टालेशन का काम मिला है, एक कंसल्टंट की भूमिका में, तो मिस राया से ही वास्ता पड रहा है.
दुर्भाग्य से इससे पहले के सिविल कार्य और अलग अलग प्लांट्स के एक्ज़ीक्युशन में हमारे देश के लोगों नें समय पर काम नही कर के दिया, जिससे मॆडम के अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में किये गये कमिटमेंट्स झूठे पड गये. इसलिये स्वाभाविक तौर पर शांत यह महिला पिछले दिनों बहुत ही गुस्सैल , उग्र और अधीर हो गयी है. ऊपर से उसे अंग्रेज़ी भी ठीक से नहीं आती. तो ठेकेदार भी मुंह तकते हैं.इसलिये मुझसे भी वह पहले ऐसा ही कुछ पेश आयीं.
चूंकि मेरा काम अंतरराष्ट्रीय कंपनीयों से काफ़ी पड रहा है, मुझे काम के प्रति Accountibilty और समय की प्रतिबद्धता का काफ़ी शऊर है.मगर , इस तरह से किसी पूर्वाग्रह के रहते मैं काम नहीं कर सकता. इसलिये मैंने उन्हे मना कर दिया. मेरे साथियों ने मुझसे यही कहा कि आप एक स्त्री के नीचे काम नहीं कर सकते.शायद आपका ईगो आडे आता है.
यह बात तो अजीब ही है. काम में उच्च दर्ज़े की professionalism में विश्वास होने के कारण और साथ में एक कलाकर्मी का दिल होने की वजह से सभी तरह के ईगो के पाश से दूर हूं(शायद यही कमज़ोरी है).
मगर जब बाद में उस महिला नें मेरा काम के प्रति समर्पण और उनके युरोप में चल रहे अत्याधुनिक ऒटोमेशन सिस्टम का डिज़ाईन कर के दिया (वह भी समय पर) तो उसनें भी माफ़ी मांगी.
पिछले दिनों पता चला कि इटली और मॊरिशस से चार फ़ॆशन डिझाइनर्स आने वाले थे तो वहां के सभी भारतीय अफ़सर और कर्मचारी और हैरान होने लगे, कि एक से ही परेशान है, और चार को कैसे झेलेंगे?साथ ही में पुरुष के परंपरागत वर्चस्व के संस्कारों का पत्थर गर्दन पर किसी बैल की तरह ढोते हुए उन व्हाईट कॊलर बंदों को जब पता चला कि वे चार डिझाइनर्स भी महिला ही है, और पूरे प्लांट्स की देखरेख भी उन्हीके जिम्मे रहेगी, तो उनकी डाह और कुंठायें मन की बावडीयों से उठ कर सतह पर आ गयी.और अब पता चल रहा है, कि कटिंग, स्टिचिंग,एक्सेसरी फ़िटिंग, और आयरनींग का काम भी सभी महिलायें ही करेंगी!!!(शायद प्लांट के मेंटेनेंस या रख रखाव के लिये तो पुरुष ही होंगे). तो महिलायें खुश हो जायें कि यह सभी व्यवस्थायें संभव हो रही है, और डंके की चोट पर सफ़लता के कदम चूमेंगी.
मगर मेरी बात अभी खतम नही हुई है.
मुझे एक गारमेंट हॆंगर का कन्वेयिंग सिस्टम डिज़ाईन करना था. मिस राया नें एक ऐसा कंसेप्ट दिया जो उनके मॊरिशस के प्लांट में अभी चल रहा है. मगर मेरी परेशानी ये थी कि वह सिस्टम पुराना है, और आज हिंदुस्तान में और संसार में इससे बेहतर और Convenient सिस्टम आ गये है. लगभग इसी तरह से इससे ज़्यादा Complicated सिस्टम मैने अभी दोहा (कतर) के एयरपोर्ट के कार्गो के लिये किया है. मगर मिस राया नें नही समझा, और समझने का समय भी नही है. ऐसे में बडी कोफ़्त होती है, एक creative व्यक्ति के लिये.विशेषकर इस बात का एहसास कि चूंकि मैं भारतीय हूं , हम कहीं इन युरोपीयन रेस से कमतर हैं, इनकी निगाह में.
अभी परसों , उन चार महिलाओं से भी वास्ता पडा. अब एक और दिक्कत पेश आयी इनके साथ. मिस राया तो थोडी बहुत अंग्रेज़ी जानती थी , अमर इनको तो सिर्फ़ इटालीयन ही आती है.मगर भगवान की कृपा रही कि उन्होने मात्र इशारों से बताई हुई सिस्टम मुझे समझ में आ रही थी और उन्हे भी बडी राहत पहुंची , क्योंकि वे विश्वास नही कर पा रहे थे.वह शायद इसलिये संभव हुआ कि मैने जिन प्रॆक्टिकल , और लॊगिकल बातों का ध्यान रखा उसमें मूल तत्व था ये कि इसे महिलाओं द्वारा ही संचालित करना था, और ऒपरेट भी करना था. इंटेरियर डिज़ाईन करते हुए, जब मैं किचन का डिज़ाईन करता था, तो यही बात ध्यान देने की वजह से गृहिणी के मन की बात समझ जाता था.(कौन कहता है आर्किटेक्ट को एक अच्छा मनोवैग्यानिक नही होना चाहिये)
अब सबसे मज़दार बात. तीन दिन पहले मैं पुणे में था, एक ऐसे कारखाने में जहां से मै अपनी डिज़ाईन के अनुसार सिस्टम बनवा सकता हूं और सप्लाई करवा सकता हूं.वहां जनरल मेनेजर (प्रोजेक्ट) से मेरी मुलाकात तय हुई थी जिसके लिये एक महिला से मेरी बात फ़ोन पर हुई थी.जब मैं वहां पहुंचा, वही महिला ने मेरा स्वागत किया, जिनका नाम था नैना (नैनो नही!!)
मैने पहुंचते ही उनसे कहा कि मुझे जल्दी से वापिस जाना है मुम्बई जहां शाम को फ़्लाईट पकडनी थी, तो उन्होने मुझे चौंका दिया. वह बोली, मैं स्वयं G M हूं और आपके साथ इस डिज़ाईन पर काम करूंगी.( उन्हे इस काम का १७ साल का अनुभव था ).यकीन मानिये, पहले तो मैं थोडा सोच में पड गया. सदियों से पडे संस्कार का एक मिनीट तो असर पड ही गया था शायद. मगर मेरी शंका उसकी काबिलियत से अधिक इस बात पर ज़्यादा थी कि शायद डिज़ाईन के comlications को समझा जायेगा या नही, क्योंकि ये अपेक्षाकृत एक नया की कंसेप्ट था, विश्व में और भारत में भी.(इसके बारे में एक अलग पोस्ट लिखूंगा, उनके लिये जिन्हे इस बात की उत्सुकता होगी कि ऐसा क्या है जो इस इक्कीसवीं सदी में भी नया है)
बस दो घंटे का ही समय था हमारे पास, और आनन फ़ानन में काम बडे ही सुगमता से और संतोषप्रद तरीके से विकसित होने लगा. देड घंटे में तो मैने उनकी फ़ेसिलिटीज़ भी देखी, और अंत में वे मुझे अपने M D से मिलाने ले गयीं. मैं फ़िर से चौंक पडा. वे भी एक महिला ही थी. मेरा मन इस अजीब और सुखद संयोग से खुश हो गया. मैं एक ऐसा सिस्टम डिज़ाईन कर रहा था जिसे एक महिला गारमेंट फ़ेक्टरी में लगना था, जिसे चलाने वाले और उपयोग करने वालीं भी महिलायें ही है, और अब ये भी संयोग रहेगा कि इसे manufacture करने वाली कंपनी भी महिलाओं द्वारा ही संचालित हो रही है!!
मैनें झट से उन महिलाओं से कहा कि आप बस दो दिन में इंदौर आ जायें और अपना ऒफ़र मिस राया को दे दें जो, एक हफ़्ते यहां रहती है, और अगले हफ़्ते इटली की मौजूदा फ़ॆक्टरी में. मगर उन विदुषी महिलाओं ने माफ़ी मांगी. नैना जी बोलीं, एक परेशानी है. मेरे बेटे की अभी दसवीं की महत्वपूर्ण परिक्षा चल रही थी, इस लिये, वे चाहेंगी कि इसके बाद ही वे इण्दौर आ सकेंगी. MD भी चूंकि स्वयं नारी ही थी, तो इस बात को उसनें भी पूरी सपोर्ट के साथ मानी भी.
मैं सोचने लगा, आज नारी कहां कहां पहुंच कर कार्य कर रही है. मगर सामाजिक व्यवस्थायें और मान्यतायें भी यही बात रेखांकित कर रही हैं कि स्त्री का सर्व प्रथम कर्तव्य है एक मां का, जो नैना नें निभाया. कोई आधुनिक विचारों वाली महिला शाय्द इसे पुरातनवादी , या बंधुआ मजदूरी के समक्ष रखेगी. मगर शायद यह कायनात, ये संस्कृति, ये सिविलाइज़ेशन, सभ्यता , आज इसीलिये टिकी है, कि एक मां ने अपने सबसे प्रथम कर्तव्य को पहचाना है, कि उसे एक अगली पीढी का निर्माण भी तो करना है. क्या ये महान कार्य एक पुरुष अंजाम दे सकता है?(आप क्या कहते है?)
मैने उस मां को मन ही मन सल्युट किया, और समय नही होने के बावजूद उस मां के जज़बे की कद्र कर खुशी खुशी लौट आया.(अब चाहे मां रुठे या बाबा, मैने तो हां कर दी)
अब आप ये कहेंगे कि इस कडी में अब सिर्फ़ एक ही पुरुष है, और वह है मैं.
मगर जरा अपनी सीट पर ठीक से बैठ जायें और गौर से पढें मेरी बात..
मीरा जी नें क्या खूब कहा था--
इस जगत में सर्व शक्तिमान ईश्वर ही एक मात्र पुरुष तत्व है, बाकी हम सभी स्त्री तत्व ही तो है....!!
क्या कहते हैं आप?
जब बात दिल से लगा ली तब ही बन पाए गुरु
9 hours ago