Sunday, May 31, 2009

बेवकूफ़ कौन?

आज तंबाखू निषेध दिवस है...

आज एक बार फ़िर अखबार रंग गये हैं , ये बात दो करोड बीस लाख वीं बार बताने को, कि तंबाखू स्वास्थ्य के लिये हानि कारक है, और केंसर का सबब. फ़िर हममें से कई सिरियसली सोचेंगे- यार वाकई में ये सही है. सिगरेट या गुटके से कोई लाभ नही है .किसी ना किसी ना किसी को तो पहल करनी ही चाहिये.

और ये सोचने के तीन सेकंद बाद एक सिगरेट सुलगाकर एक लंबा कश लेकर धुआं छोडते हुए कहेंगे-

हर फ़िक्र को धुएं में उडाता चला गया.

क्या अजीब दुखद संयोग है. आज अभी अभी मैं एक दाहसंस्कार से हो कर आया हूं और आते ही लिखने बैठ गया. मेरे पिताजी के मित्र श्री अजीतसिंग जी नही रहे.८८ वर्ष की आयु में आज ही सुबह उनका स्वर्गवास हुआ और उनके निधन का कारण था केंसर...

हम कई सालों पहले जहां रहते थे (पिपली बाज़ार) वे हमारे पडोसी थे. तहसिलदार से कलेक्टर तक का सफ़र तय किया था उन्होनें और हम बचपन से देखते चले आये हैं कि वे पान बहार यूं खाते हैं जैसे कि हम सांस लेते हैं.(पहले वे तमाखू खाते थे और बाद में पान मसाला). उन्हे हम सभी मालेक हुकुम बुलाते थे, मगर चूंकि उनका तकिया कलाम था बेवकूफ़- तो मेरे पिताजी ने उनका उपनाम ही रख दिया था कि बेवकूफ़..वो पिताजी को मास्टर ...

मुझे वह दिन आज भी याद है, कि हमारे संयुक्त परिवार में मेरे बडे भाईयों (भाऊ,दादा)के साथ एक बार मैं भी मालेक हुकुम के दोनो बेटों के साथ पिक्चर देखने चला गया था. मैं छो्टा होने से हमारी व्यवस्था भेड की तरह होती थी. जहां बडे ले जाये,वहां चले जायें.

बाद में लौटने पर मालूम हुआ, कि मालेक हुकुम के बेटों ने, एम भैया और एन भैया(महेंद्र और नरेंद्र) नें अपने पिताजी को बिना पूछे घर की रद्दी बेच दी थी(पांच आने सेर के भाव में )और पैसे लेकर सिनेमा देखने चले गये थे श्रीकृष्ण टाकीज़ में.रद्दीवाले की चुगली नें भांडा फ़ोड दिया था.

बस क्या था, आते ही आनन फ़ानन में मालिक हुकुम नें एम और एन भैया को आडे हाथों लेते हुए लकडी की स्केल से चार पांच बार सुताई कर दी, और एक दो बार हमारे बडे भाईयों की भी(मैं बच गया क्योंकि बहुत ही छोटा होने से अपराधियों के श्रेणी में नही आया था तब तक!- मगर कान उमेठनें की सज़ा ज़रूर पायी)

ताबडतोब हमारे ताऊ जी को बुलाया गया , और वे भी वहीं शुरु हो गये.(मुर्गा बनने की सज़ा की वजह से बाद में हिंसक गतिविधियां बंद हुई!!!)

क्या आपने एक बात नोट की ? कोई अपने पडोसी के बेटे को आज मार सकता है? पडोसी तो पडोसी, क्या सगे ताऊ या चाचा ये ज़ुर्रत कर सकतें है?

इस सभी एपिसोड के अंत में मालेक हुकुम नें हम सभी को पास में लेते हुए पुचकारते हुए कहा- बच्चों , पैसे चाहिये थे तो हमसे मांग लेते - गलत आदत क्यों डालते हो?

आज हम रिस्ट्रोस्पेक्ट में देखते हैं तो मन ये सोचता है, कि हम नें बाद में ऐसी कोई भी आदत नही डाली,और खुद मालेक साहब हुकुम ?

इसलिये कल शाम को जब मेरे पिताजी उन्हे मिलने गये थे तो वे यही बोले- मैं तुझे बेवकूफ़ कहता था - कि तू मास्टर का मास्टर ही रहा ( वैसे पिताजी वाईस चांसलर बन कर रिटायर हुए थे). मगर आज अगर ये तमाखूं नही होती तो और भी जीते.

आज सुबह उनको जब ये खबर दी तो वे यही बोले-- बेवकूफ़ नही रहा.....

आज जब उनके पार्थिव देह को उठाया तो एम भैया की लडकी नें अंदर से उनकी छडी और ऐनक लाकर दी , उनके साथ ले जाने के लिये.. और साथ में अग्नि के हवाले करने के लिये.

मगर अचानक बडी भाभी पूजा भाभी अंदर गयीं और एक पान बहार का डब्बा भी उठाकर ले आयी,और अर्थी पर रख दिया. एम भैया चौंक पडे. उन्होने डिब्बे को देखा और फ़िर भाभी को. मेरे से भी आंखे पल भर के लिये मिली ,और झुक गयी.

फ़िर मुंह में से पान मसाले की पीक थूकते हुए (शायद आखरी बार?) एम भैया अर्थी को कांधा देने के लिये बढे़.........

वह डब्बा मालेक हुकुम का नही था.वह था एम भैय्या का .......

7 comments:

शरद कोकास said...

दिलीप भाई बहुत मार्मिक प्रसंग छेडा है आपने.तम्बाकु पर एक अलग किस्म की कविता है मेरे ब्लोग पर http://kavikokas.blogspot.com देखें

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

भारतीय तहजिब मेँ पान, भी एक खासियत लिये हुए हैँ परँतु, आजकल के पान मसाले और तमाखू से जो तबियत पर बुरी असर होती है उस तथ्य पर ध्यान दीलवाने का शुक्रिया दिलीप भाई -

सँस्मरण मार्मिक लगा -

पुराने दोनोँ के लोग और ये आपसी नेह नाते कितने अलग थ आज का समाज ह्रर इन्सान को एक टापु बना कर अकेला करता आगे बढ रहा है

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत नाजुक अंदाज मे आपने लिखा. बहुत बढिया.

रामराम.

Udan Tashtari said...

सार्थक, आवश्यक और सशक्त आलेख दिवस विशेष पर..आभार.

Alpana Verma said...

यह पान मसाले के ब्रांड की लोकप्रियता ही है जिसे पान मसाला नहीं पान पराग कहा जाता है.पर्याय हो गए हैं ये शब्द.इस का कारण ही है की जानते बूझते भी लोग तम्बाकू का सेवन करना नहीं छोड़ते.
एक सिगरेट उम्र का एक मिनट कम करती है..आप ने जो संस्मरण बताया वह मर्म स्पर्शी था..


जब तक व्यक्ति के अन्दर खुद ही यह इच्छा नहीं आएगी की उसके लिए क्या अच्चा है क्या बुरा तब तक आप इन तस्वीरों को दिखा कर तम्बाकू का सेवन नहीं रुकवा सकते..यह बिच्छू की तस्वीर क्या डरावनी लग रही है??..इस का तो tatoo बनवाते हैं लोग अपने शरीर पर!

डॉ .अनुराग said...

सच कहा आपने .हम जैसे जैसे आधुनिक हुए है .व्यक्ति के रूप में छोटे ओर छोटे हो गये है....आज पडोसी तो क्या टीचर भी हाथ नहीं उठा सकता बच्चो पे ...कहने का अंदाज निराला है ...

राज भाटिय़ा said...

दिलीप भाई आप का लेख पढ कर मुझे अपने पिता याद आ गये,....
ओर हां आज के बच्चो को मां बाप खुद ही बिगाड रहे है, वेसे हमारी उमर मै तो गलती करने पर जिस के भी हाथ लग गये पिटाई जरुर होती थी, ओर घर पर बताने पर दोवारा, इस लिये एक पिटाई ही छुपा लेते थे.

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